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________________ ( २७ ) ए - आग लग जाए, बाढ़ का पानी कीजिएचढ़ ग्राए, वृकादि हिंसक पशु प्राक्रमण करने वाले हों, अथवा अन्य कोई विषम स्थिति हो, तो क्या किया जाय ? क्या इस स्थिति में भी पशुओं को सुरक्षित एकान्त स्थान में न बाँधे, उन्हें यों ही ग्रनियंत्रित घूमने दे और मरने दे ? नहीं, निशीथ भाष्यकार के शब्दों में शास्त्राज्ञा है कि उक्त अपवादपरक स्थितियों में पशुओं को सुरक्षा के लिए बाँधा जा सकता है । ६८ जो दृष्टि बाँधने के सम्बन्ध में है, वही खोलने के सम्बन्ध में भी है। गृहस्थ के प्रति चापलूसी का दीन भाव रख कर कि वह मुझ पर प्रसन्न रहेगा, फलस्वरूप मन लगा कर सेवा करेगा. गृहस्थ का कोई भी संसारी कार्य न करे। परन्तु यदि पशु श्राग लगने पर जलने जैसी स्थिति में हों, गाढ बन्धन के कारण छटपटा रहे हों, तो सुरक्षा के लिए पशुओं को खोल भी सकता है। १९ यह अपवाद पद है, जो अनुकम्पा -भाव से विशेष परिस्थिति में अपनाया जा सकता है । अतिचार और अपवाद का अन्तर प्रतिचार और ग्रपवाद का अन्तर समझने जैसा है। बाह्य रूप में अपवाद भी प्रतिचार ही प्रतिभासित होता है । जिस प्रकार प्रतिचार में दोष सेवन होता है, वैसा ही अपवाद में भी होता है, अतः बहिरंग में नहीं पता चलता कि प्रतिचार और अपवाद में ऐसा क्या अन्तर है कि एक त्याज्य है, तो दूसरा ग्राह्य है । अतिचार और अपवाद का बाहर में भले ही एक जैसा रूप हो, परन्तु दोनों की पृष्ठ भूमि में बहुत बड़ा अन्तर है । प्रतिचार कुमार्ग है, तो अपवाद सुमार्ग है । प्रतिचार अधर्म है, तो अपवाद धर्म है । प्रतिचार संसार का हेतु है, तो अपवाद मोक्ष का हेतु है । ६८ - बितिय पदमणप्पज्भे, बंधे श्रविकोविते व अप्प | विसमsगड प्रगणि भाऊ, सणकगादीसु जागमवि ॥३६८३ ॥ - निशीथ भाष्य विसमा भगड प्रगणि प्राऊयु मरिज्जिहिति त्ति, वृगादिसणप्कएण वा मा खिज्जिहि ति, एवं जागो वि बंधइ - निशीथ चूर्णि ६६ - बितियपदमण पज्झे, मुंचे प्रविकोविते व प्रप्पज्छे । जाणते वा वि पुणो, बलिपासग प्रगणिमादीसु || ३६८४ ॥ - निशीथ भाष्य बलिपासगो त्ति बंधणी, तेण घईवगाढं बद्धो मूढो वा तडप्फटेड, मरइ वा जया, तया मुंबई' प्रणिति पलवणगे बद्ध मुंचेइ मा डज्झिहिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only - निशोथ चूर्णि -- www.jainelibrary.org ↓
SR No.001830
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages644
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_nishith
File Size10 MB
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