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सभाष्य-चूणिके निशीथसूत्रे
मूत्र-८४
परपक्खे उ सपक्खो, उदायिणिवमारतो जह य दुट्ठो।
सो पवयण-रक्खट्टा, णिच्छुभति लिंग हातूणं ॥३६८८॥ इदाणि ततियभंगो - .
परपक्खो उ सपक्खे, भइतो जइ होइ जउणराया उ। .
तं पुण अतिसयणाणी, दिक्खंतधिकारणं नाउं ॥३६८६॥ परपक्खो सपक्खे दुवो जहा मधुराए जउणराया। अक्खाणगं जहा ज़ोगसंगहेसु । एवं अतिसयणाणी जति उवसंतो तो दिक्खंति । अणुवसंतो एसेव भयणा । अणतिसती ण दिक्खंति, दिक्खंति व' अविगारिणं णात ॥३६८६।। चउत्थभंगो
परपक्खो परपक्खे, दंडिकमादी पदुट्ठो परदेसे ।
उवसते वा तत्थ उ, दमगादि पदुट्टो भतितो उ ॥३६६०॥ दंडियादी जे परोप्परं पउडा ते तत्थेव न दिक्खेयव्वा, मा एगतरो एगस्स घातं काहिति । ने पउट्ठा जत्थ परोप्परं न पस्संति तेण परदेसे दिक्खा दोसु वि परोप्परे उवसंतेसु । ईसरो वा उवसंते दम. गमणुवसंतं तत्थेव दिवखेत्ति, भयणा वा, अतिरुद्दो पोरसवीरियं दमगं पि तत्थेव ण दिक्खेति । एस भयणा ।।३६६०॥ इयाणि विसयदुट्ठो भण्णति -
तिविहो उ विसयदुट्ठो, सलिंगि गिहिलिंगि अण्णलिंगी य ।
एत्तो एक्केक्को वि य, णेगविहो होति णायव्यो ।।३६६१॥
सलिंगट्टितो विसयदुद्दो, एवं गिहिलिंगप्रणालिंगट्टितो विसयदुट्ठो। एक्कक्के अणेगभेदा इमे - सलिंगी सलिंगे, सलिगी गिहिलिगे, सलिंगी अण्ण लिंगे। एव गिहिलिगे अण्णलिगे य तिणि तिणि भेदा कायव्वा ।। ६६१॥
अह सपक्खपरपक्वेहि चउभंगो कायव्वो। पढमभंगो इमो -
सपरिपक्खो विसयदुट्ठो, सपक्खे पारंचिो उ कायव्यो ।
आउदृस्स उ एवं, हरेज्ज लिंगं अठायते ॥३६६२॥
जो पउट्टो सो प्राउट्टो पारंचिो काययो, अट्ठायते पुण लिंगं हरति । बितियभंगो वि एवं चेव वत्तब्वो ॥३६६२॥
इमो ततियभंगो वि -
परपक्वं तु सपक्खे, विसयपदुटुं न तं तु दिक्खंति । सेज्झियमादिपदुटुं, न य परपमवं तु तत्थेव ॥३६६३॥
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