SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाष्यगाथा ६६२-६७२ ] प्रथम उद्देशकः "अणट्ठा" णिप्पोयणे, पडिहरणिज्ज "पाडिहारिय” ॥६६८।। इमे दोसा - णढे हित विस्सरिते, तदण्ण दव्यस्स होति वोच्छेदो । पच्छाकम्मपवहणं, धुवावणं वा तदट्ठस्स ॥६६६॥ हत्थानो चुता गट्ठा, तेणेहिं हिता, कहिं पि मुक्का ण जाणए वीसरिता । तद्दव्वप्रणदव्वस्स वा तस्स वा अण्णस्स वा साहुस्स वोच्छेयं करज्जा । पच्छाकम्मं अण्णं घडावेति प्रसूतिसमणेण वा छिक्का घोवति । प्रवहंतं वा अण्णं वा घोवावेति । धुवावणं दवावेति ॥६६६॥ प्राणाए वोच्छेदे, पवहण किण पच्छकम्म पच्छित्ता। गुरुगा गुरुगा लहुगा, लहुगा गुरुगा य जं चऽणं ॥६७०॥ प्राणादी पंचपदा एतेसु जहासंखं । पायच्छित्ता पच्छद्धणं ॥६७०।। जे भिक्खू अविहीए सूई जायइ, जायंतं वा सातिज्जति ॥०॥२३॥ जे भिक्खू अविहीए पिप्पलगं जायइ, जायंतं वा सातिज्जति ॥११॥२४॥ जे भिक्खू अविहीए णहच्छेयणगं जायइ, जायंतं वा सातिज्जति ॥२०॥२५॥ जे भिक्खू अविहीए कण्णसोहणयं जायइ, जायंतं वा सातिज्जति ॥०॥२६॥ जे भिक्खू पाडिहारियं सूई जाइत्ता वत्थं सेव्विस्सामि त्ति पादं सिव्वति, सिव्वंतं वा सातिज्जति ॥२०॥२७॥ जे भिक्खू पाडिहारियं पिप्पलयं जाइत्ता वत्थं छिंदिस्सामि त्ति पायं छिंदति, छिदंतं वा सातिज्जति ॥२॥२०॥ जे भिक्खू पाडिहारियं णहच्छेयणयं जाइत्ता नखं छिंदामि त्ति सल्लुद्धरणं करेड, करतं वा सातिज्जति ॥सू०॥२६॥ जे भिक्खु पाडिहारियं कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं-णीहरिस्सामि त्ति दंतमलं वाणखमलं वाणीहरेति णीहरार्वतं वा सातिज्जति सू०॥३०॥ का अविधी ? इमा - वत्थं सिव्विस्सामी, ति जाइ पादसिव्वणं कुणति । अहवा वि पादसिव्वण, काहेतो सिब्बती वत्थं ॥६७१॥ कंठा ॥६७१॥ तं दट्ठण सयं वा, अहवा अण्णेसि अंतियं सोचा। अोभावणमग्गहणं, कुज्जा दुविधं च वोच्छेदं ।।६७२।। १ हृता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001829
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_sanstarak
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy