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________________ निशीथ भाष्य और उसके कर्ता : ४३ (e) निशीथ गा० ५४५६ के उत्तरार्ध को और साथ ही गा० ५४६० को बृहत्कल्प भाष्य में (गा० ५३६३-५३६४ ) नियुक्ति कहा गया है । और उक्त नियुक्ति गाथाओं की भाष्य सम्बन्धी व्याख्या गाथाम्रों के विषय में निशीथचूर्णि के शब्द इस प्रकार हैं- 'सिद्धसे - स्वमासमणो वक्खाणेति' गा० ५४६३ का उत्थान | यह व्याख्यान - गाथा बृहत्कल्प भाष्य में भी है - गा० ५३६८ । इस प्रकार स्पष्ट है कि सिद्ध सेन क्षमाश्रमण भाष्यकार हैं । (१०) गा० ५७१४ की चूर्णिमें गाथा ५७११ को भद्रबाहुकृत कहा है और सिद्धसेन खमासमणने इसी की व्याख्या को फुडतर करने के लिये उक्त गाथाएँ बनाई हैं, ऐसा उल्लेख है - 'जे भणिया भट्टबाहुकयाए गाहाए सच्छन्दगमणाइया तिथिण पगारा ते चेत्र सिद्धू सेणखमासमणेहि फुढतरा करेंतेहि इमे भणिता' - गा० ५७१४ को उत्थान सम्वन्धी निशीथ चूर्णि । यह समग्र प्रकरण बृहत्कल्प से लिया गया है, और प्रस्तुत गाथा को 'नियुक्ति गाथा' कहा है। देखिए, निशीथ गा० ५६२५-५७२६ और बृह० गा० ३०४१-३१३८ । स्पष्ट है कि भाष्यकार सिद्धसेन हैं । (११) गा० ६१३८, चूर्णि के अनुसार भद्रबाहुकृत नियुक्ति गाथा है । उक्त गाथा में निर्दिष्ट प्रतिदेश का भाष्य सिद्धसेन करते हैं, ऐसा उल्लेख चूर्णि में है -- '९९ श्रतिदेसे कए वि सिद्ध सेणखमासमणो पुग्वद्धस्स भणियं श्रतिदेसं वक्त्राणेति ।' - निशीथ चूर्णि, गा० ६१३६ उपर्युक्त सभी उल्लेखों के ग्राधार पर यह निश्चय किया जा सकता है कि निशीथ भाष्य तो निर्विवाद रूप से सिद्धसेन क्षमाश्रमणकृत है । और क्योंकि बृहत्कल्प और व्यवहार कर्ता भी वे ही हैं, जिन्होंने निशीथ भाष्य की संकलना की है, अतएव कल्प, व्यवहार और निशीथ इन तीनों के भाष्यकर्ता सिद्धसेन हैं- ऐसा माना जा सकता है। अब तक की भाष्यकार सम्बन्धी समग्र चर्चा कि क्षेम कीर्ति ने भाष्यकार के रूप में सिद्धसेन का दिया ? इसका उचित स्पष्टीकरण अभी तो लक्ष्य में मिल सकें और उक्त प्रश्न का समाधान हो सके । पर एक प्रश्न खड़ा हुआ है । वह यह नाम न देकर संघदास का नाम क्यों नही है । संभव है, भविष्य में कुछ सूत्र अब प्रश्न यह है कि ये सिद्धसेन क्षमाश्रमण कौन हैं और कब हुए हैं ? सन्मतितर्क के कर्ता सुप्रसिद्ध सिद्धसेन दिवाकर से तो ये क्षमाश्रमण सिद्धसेन भिन्न ही हैं । उक्त निर्णय निम्न प्रमाणों पर आधारित है । (१) दोनों की पदवी भिन्न है । एक दिवाकर हैं, तो दूसरे क्षमाश्रमण । (२) सन्मति तर्क सिद्धसेन दिवाकर का ग्रन्थ है, और उसके उद्धरण नय चक्र में हैं । और नयचक्र-कर्ता मल्लवादी का समय विक्रम ४९४ के आसपास है। जब कि प्रस्तुत भाष्य के कर्ता सिद्धसेन क्षमा श्रमण इतने प्राचीन नहीं हैं । (३) निशीथ भाष्य की वृणि, यदि भाष्य के सही अभिप्राय को व्यक्त करती है, तो यह भी माना जा सकता है कि भाष्यकार के समक्ष सम्मति तर्क था और वे प्रश्वकर्ता सिद्धसेन से भी परिचित थे - देखिए, निशीथ गा० ४८६, १८०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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