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________________ ४२ निशीथ : एक अध्ययन है। ये सभी गाथाएं बृहत्कल्प में भी हैं-गा० ६०६६-८७ । निशीथ-चूणि में इन गाथानों के व्याख्या-प्रसंग में कहा गया है कि व्याख्याकार सिद्धसेन हैं-'अस्यैवार्थस्य स्पष्टतरं व्याख्यान सिद्धसेनाचायः, करोति' - गा० ३०३ का उत्थान । और ३०४ का उत्थान भी ऐसा ही है। इससे फलित होता है कि बृहत्कल्प और निशीथ के भाष्यकार सिद्धसेन हैं । (४) गा० २४६ को चूणि कारने 'चिरंतन' गाथा कहा है और उसकी व्याख्या करने वाले स्पष्ट रूप से सिद्धसेनाचार्य निर्दिष्ट हैं-देखो गा० २५० को चूणि-'एतस्स चिरंतनगाहापायस्स सिद्धसेनाचायः स्पष्टेनाभिधानेनाथमभिधत्ते' । यह उल्लेख इस बात की ओर संकेत करता है कि नियुक्तिकार भद्रबाहुने प्राचीन गाथाओं का भी नियुक्ति में संग्रह किया था, और भाष्यकार सिद्धसेन हैं। (५) गा० ४६६ से शुरू होने वाला प्रकरण बृहत्कल्पभाष्य से (गा० ४८६५) ही लिया गया है । उक्त प्रकरण की ५०४ वीं गाथा के उत्थान में लिखा है-'इममेवार्थ सिन्दसेनाचार्यो वक्त काम आह ।' इससे भी सिद्ध होता है कि बृहत्कल्प और निशीथ भाष्य के कर्ता सिद्धसेन हैं। (६) गा० ५१८ से शुरू होने वाला प्रकरण भी 'बृहत्कल्प से लिया गया है। देखिएनिशीथ गाथा ५१८ से ५४६ और बृहत्कल्प भाष्य गा० २५८४ से २६१५ । इस प्रकरण की ५४० से ५४४ तक की गाथाओं को चूर्णिकारने सिद्धसेनाचार्यकृत बताया है-देखिए, गा० ५४५ की उत्थान चूणि । चूर्णिकार और मलयगिरि दोनों का मत है कि इन गाथानों में जो विस्तार से कहा गया है वही संक्षेप में भद्रबाहुने कहा है-देखिए, नि० गा० ५४५ की चूणि और बृह० गा० २६११ की टीका का उत्थान । स्पष्ट है कि निशीथ और बृहत्कल्प के भाष्यकार सिद्धसेन हैं। (७) गा० ४०६६-६७ की चूणि में भद्रबाहुकृत माना है और उन्हीं गाथाओं के अर्थ को सिद्धसेन स्फुट करते हैं. ऐसा निर्देश भी चूणि में किया है-'भद्रबाहुकया गाथा' और 'भद्रवाहुकृत. गाथया ग्रहणं निर्दिश्यते'-निशीथ चूणि गा० ४०६६ और ४०६७ । तदनंतर लिखा है-'एसेवऽत्यो सिद्धसेणखमासमणेण फुडतरो भन्नति'---गा० ४०६८ की निशीथ चूणि । जिस प्रकरण में ये गाथाएँ हैं वह समग्र प्रकरण बृहत्कल्प से ही निशीथ में लिया गया है-देखो, निशीथ गा० ४०५६ से ४१०६ और बृह० गा० १८१६–१८६७ । मलयगिरि ने बृह० गा० १८२६-नि० गा० ४०६७ को नियुक्ति कहा है और निशीथ चूर्णि में उसे भद्रबाहु कृत माना गया है। उक्त गाथा की व्याख्यागाथा को अर्थात् बृ० गा० १८९७-निशीथ गा० ४०७० को भाष्यकारीय कहा गया है, जब कि चूणिकार के मत से वह व्याख्या सिद्धसेनकृत है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भद्रबाहुकृत नियुक्ति ( बृहत्कल्प और निशीथ नियुक्ति ) की व्याख्या भाष्यकार सिद्धसेनने की है। (८) निशीथ गा०१६६१, बृहत्कल्प में भी है-बृ० गाथा ३७१५। गा० १६६१ की व्याख्यारूप नि० गाथा १६६४-६० गा० ६७१५ को चूर्णिकार स्पष्ट रूप से सिद्धसेन कृत बताते हैं। ये गाथाएं जिस प्रकरण में हैं, वह समत्र प्रकरण निशीथ में बृहत्कल्प भाष्य से लिया गया हे । देखिए, निशीथ भाष्य गा० १६६६-१७८४ और बृ० भा० गा० ३६६०.३८०४ । उक्त प्रकरण पर से यही फलित होता है कि भाष्यकार सिद्धसेन हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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