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________________ -१० निशीथ : एक अध्ययन किया है, उस पर ध्यान नहीं दिया । अतएव उनको यह कल्पना करनी पड़ी कि मूल शब्द 'निसीह' का संस्कृत रूप 'निषेध' से सम्बन्ध रखता है । 'निशीथ' नाम के जो अन्य पर्यायवाचक शब्द दिये हैं', उनमें भी कोई निषेधपरक नाम नहीं है। ऐसी स्थिति में इस प्रन्थ का नाम निशीथ के स्थान में 'निषेध' करना उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। टीकाकारों को 'निसीहिया' शब्द और उसका अर्थ अत्यन्त परिचित भी था । ऐसी स्थिति में यदि उसके साथ 'निसीह' शब्द का कुछ भी सम्बन्ध होता, तो वे अवश्य ही वैसी व्याख्या करते। परन्तु वैसी व्याख्या नहीं की, इससे भी सिद्ध होता है कि 'णिसीह' का 'निशीथ' से सम्बन्ध है, न कि 'निषेध' से। 'णिसीह'-निशीथ शब्द की व्याख्या, परम्परा के अनुसार निक्षेप पद्धति का प्राश्रय लेकर, नियुक्ति-भाष्य-चूणि में की गई है । उसका सार यहाँ दिया जाता है, ताकि निशीथ शब्द का अर्थ स्पष्ट हो सके, और प्रस्तुत में क्या विवक्षित है-यह भी अच्छी तरह ध्यान में ग्रा सके। निशीथ शब्द का सामान्य अर्थ किया गया है-अप्रकाश ।-'णिसीहमप्रकाशम् । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से जो निशीथ की विवेचना की गई है, उस पर से भी उसके वास्तविक अर्थ का संकेत मिलता है। द्रव्य निशीथ मैल या कालुष्य है। गंदले पानी में कतक वृक्ष के फल का चूर्ण डालने पर उसका जो मैल नीचे बैठ जाता है वह द्रव्य निशीथ है, और उसका प्रतियोगी स्वच्छ जल अनिशीथ है । अर्थात् जो द्रव्य अस्वच्छ या कलुष है. वह निशीथ है। क्षेत्र दृष्टि से लोक में जो कलुष अर्थात् अंधकारमय प्रदेश हैं उन्हें भी निशीथ की संज्ञा दी गई है । देवलोक में अवस्थित कृष्ण राजियों को, तिर्यग्लोक में असंख्यात द्वीप समूहों के उस पार अवस्थित तमःकाय को, तथा सोमंतक आदि नरकों को अंधकारावृत होने से निशीथ कहा गया है । मैल जिस प्रकार स्वयं कलुष या अस्वच्छ है अर्थात् स्वच्छ जल की भांति प्रकाश-रूप नहीं है, वैसे ही ये प्रदेश भी कलुष ही हैं । वहाँ प्रकाश नहीं होता, केवल अंधकार ही अंधकार है। इस प्रकार क्षेत्र की दृष्टि से भी अप्रकाश, अप्रकट, या अस्वच्छ प्रदेश, अर्थात् अंधकारमय प्रदेश ही निशीथ है। काल की दृष्टि से रात्रि को निशीथ कहा जाता है, क्योंकि उस समय भी प्रकाश नहीं होता, अपितु अंधकार का ही राज्य होता है। अतएव रात्रि या मध्यरात्रि भी कालदृष्टि से निशीथ है। १. नि. गा० ३ २. नि. गा० ६७ से ३. नि० पू० गा० ६८, १४८३ ४. रात में होने वाले स्वाध्याय को भी 'निशीथिका' कहा गया है। इसी पर से प्रस्तुत सूत्र, जो प्रायः प्रप्रकाश में पढ़ा जाता है, निशीथ नाम से प्रसिद्ध हुमा है । धवला पोर जयधवला में 'निशीथिका' का ही प्राकृतरूप निसीहिया' स्वीकृत है, ऐसा मानना उचित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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