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________________ निशीथ : एक अध्ययन निशीथ सूत्र हो नहीं, किन्तु उसकी 'पीठिका' के लिये भी कहा गया है कि यदि कोई बहुश्रुत, रहस्य को बता देने वाला, जिस किसी के समक्ष - यावत् श्रावकों के संमुख भी अपवाद की प्ररूपणा करने वाला, अपवाद का अवलंबन लेने वाला, असंविग्न और दुर्बलचरित्र व्यक्ति हो, तो उसे पढ़ने का अधिकार नहीं है । प्रतएव ऐसे प्रनधिकारी व्यक्ति को 'पीठिका' के अर्थ का ज्ञान नहीं कराना चाहिए। यदि कोई हठात् ऐसा करता है तो वह प्रवचन घातक होता है और दुर्लभ बोधि बनता है । " ८ लोकोत्तर दृष्टि से तो इस प्रकार निशीथ का महत्त्व स्वयं सिद्ध है हो, किन्तु लौकिक दृष्टि से भी निशीथ का महत्त्व कुछ कम नहीं है । ईसा की छठी सातवीं शती में भारत वर्ष के सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक संघों की क्या परिस्थिति थी, इसका तादृश चित्रण निशीथभाष्य और चूर्णि में मिलता है । तथा कई शब्द ऐसे भी हैं, जो अन्य शास्त्रों में यथास्थान प्रयुक्त मिलते तो हैं, किन्तु उनका मूल अर्थ क्या था, यह अभी विद्वानों को ज्ञात नहीं है । निशीथचूर्णि उन शब्दों का रहस्य स्पष्ट करने की दिशा में एक उत्कृष्ट साधन है, यह कहने में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है । 'निसीह' शब्द और उसका अर्थ : आचारांग नियुक्ति में पांचवीं चूला का नाम 'आयार पकप्प' तथा 'निसीह' दिया हुआ है । अन्यत्र भी उक्त शास्त्र के ये दोनों नाम मिलते हैं । नन्दी में (सू० ४४ ) और पक्खियसुत्त ( पृ० ६६) में भी 'निसीह' शब्द प्रस्तुत शास्त्र के लिये प्रयुक्त है । धवला में इसका निर्देश 'णिसिहिय' शब्द से हुआ है। तथा जय धवला में 'णिसोहिय' का निर्देश है । और अंगप्रज्ञप्ति चूलिका में (गा० ३४) 'णिसेहिय' रूप से उल्लेख है । 'निसीह' शब्द का संस्कृत रूप 'निशीथ', तत्त्वार्थ भाष्य जितना तो प्राचीन है ही । किन्तु दिगम्वर साहित्य में उपलब्ध 'णिसिहिय'' - या 'णिसीहिय' शब्द का संस्कृत रूप 'निषिधक' हरिवंश पुराण में (१०, १३८) मिलता है, किन्तु गोम्मट सार टीका में 'निषिद्धिका' रूप निर्दिष्ट है, "निषेधनं प्रमाददोष निराकरण निषिद्विः, संज्ञायां क प्रत्यये 'निविद्धि का' प्रायश्चित्तशास्त्रमित्यर्थः ।" ( जीव काण्ड, गा० ३६८ ) वेबर ने 'निसीह' शब्द के विषय में लिखा है : This name is explained strangely enough by Nishitha though the १. नि० गा० ४१५ - ६ २. ३. ४ प्राचा० नि० गा० २६१, ३४७ षट्खण्डागम, भाग १ पृ०, कसायपाहुड भाग १ ० २५, १२१ टिप्पणों के साथ देखें । तत्वार्थ माष्य १, २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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