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________________ निशीथ : एक अध्ययन लिये 'उपगनिका', घुटनों के लिये 'श्रालिंगणी', तथा चमं वस्त्रकृत और रूई से पूर्ण उपधानविशेष को 'मसूरक' कहा जाता है (नि० ग ० ४००१) । ७८ कुम्भकार की पाँच प्रकार की शालाओं का वर्णन है - जहाँ भांड बेचे जाएँ वह पणियशास्त्रा, जहाँ भांड सुरक्षित रखे जाएं वह भंडसाला, जहां कुम्भकार भांड बनाता है वह कम्मसाला, जहाँ पकाये जाते हैं वह पयणसाना ( पचनगाला), और जहाँ वह अपना इन्धन एकत्र रखता है वह इंधणशास्त्रा है (नि० गा० ५३६१) । इसी प्रकार बहुत से ग्रन्य शब्दों की व्याख्या भी दी गई है । जैसे- जहाँ लोग उजाणी के लिये जाते हैं, या जो शहर के नजदीक का स्थान है वह उज्जाण उद्यान कहलाता है । जो राजा के निर्गमन का स्थान हो वह णिजाणिया, जो नगर से बाहर निकलने का स्थान हो वह 'शिवाय' होता है । उज्जाण और णिमाण में बने हुए गृह क्रमशः उज्जाणगिह और विजा जगह कहलाते हैं । नगर के प्राकार में 'बट्टालग' होता है। प्राकार के नीचे प्राधे हाथ में बने रथमार्ग को 'चरिया' और बलानक को 'द्वार' कहते हैं । प्राकार के दो द्वारों के बीच एक गोपुर' होता है। नीचे से विशाल किन्तु ऊपर-ऊपर संबंधित जो हो, वह 'कूडागार' है । धान्य रखने का स्थान 'कोट्ठागार' (कोठा) कहा जाता है । दर्भ ग्रादि तृण रखने का स्थान, जो नीचे की ओर खुला रहता है, 'तणसाला' है । बीच में दीवालें न हों तो 'साला' और दीवाले हों तो 'गिह' होता है । अश्वादि के लिये 'शाला' और 'सिंह', दोनों का प्रबन्ध होता था । इस प्रकार निवास सम्बन्धी ग्रनेक तथ्य निशीथ से ज्ञात होते हैं (नि० उ० ८. सू० २ से तथा चूर्णि ) | 'मडग गिह' - 'मृतकगृह' का भी उल्लेख है । म्लेच्छ लोग मृतक को जलाते नहीं, किन्तु घर के भीतर रखते हैं । उस घर का नाम 'मडगगिह' है। मृतक को जलाने के बाद जब तक उसकी राख का पुंज नहीं बनाया जाता, तब तक वह 'मगार' है। मृतक के ऊपर ईंटों की चिता बनाना, यह 'मडगधूम' या 'विश्वग है । श्मशान में जहाँ मृतक लाकर रखा जाता है वह 'मडासय' - मृताश्रय है। मृतक के ऊपर बनाया गया देवकुल 'लेण' है (नि० उ० ३ सू०७२, गा० १५३५, १५३६) । धार्मिक विश्वासों के कारण नाना प्रकार के गिरिपतन प्रादि के रूप में किए जाने वाले बालमरणों का भी विस्तृत वर्णन मिलता है- - गा० ३८०२ से । = निवासस्थान को कई प्रकार से संस्कृत किया जाता था जैसे कि संस्थापन = गृह के किसी एक देश को गिरने से रोकना, लिंपन = गोबर ग्रादि से लोपना, परिकमं गृह-भूमि का समीकरण, शीतकाल में द्वार को संकड़े कर देना, गरमी के दिनों में चौड़े कर देना, वर्षा ऋतु में पानी जाने का रस्ता बनाना, इत्यादि विविध प्रक्रियायों का वर्णन प्रतिविस्तृत रूप से दिया हुआ है- गा० २०५२ से 1 विविध उत्सवों में - तीर्थंकरों की प्रतिमा की स्नानपूजा तथा रथयात्रा का ( गा० ११६४) निर्देश है । ये उत्सव वैशाख मास में होते थे ( गा० २०२६) । भाद्र शुक्ला पंचमी के दिन जैनों का 'पर्युषण' और सर्वसाधारण का 'इन्दमह' दोनों उत्सव एक साथ ही होने के कारण, १. नि० उ० १२. सू० १६, गा० ४१३६ । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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