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सांस्कृतिक सामिग्री : धातु से बनता था-यह स्पष्ट नहीं है; किन्तु इसे सुवर्णमुद्रा से भिन्न रखा है और कहा गया है कि यह केवडिय' नाणक पूर्व देश में 'केतरात' (बृ० टी० 'केतरा') कहा जाता है।
'दीणार' के विषय में यह भी सूचना मिलती है कि एक 'मयूरांक' नामक राजा था। उसने अपने चित्र को अंकित कर दीणार का प्रचलन किया था 'मयूरको णाम राया। तेण मयूरं केण अंकिता दीणारा पाहणाविग।' -नि० गा० ४३१६ चू० । भाष्य में उसे 'मोरणिव' कहा गया है ।
___राजा और धनिकों के यहाँ बच्चों को पालने के लिये धातृयाँ रखी जाती थीं। भिक्षु लोग किस प्रकार विभिन्न धाइयों की निन्दा या प्रशंसा करके अपना काम बनाते थे-इसका रोचक वर्णन निशीथ भाष्य में है। विभिन्न कार्यो के लिये नियुक्त पांच प्रकार की धातृमातामों का वर्णन भी कम रोचक नहीं है। यह प्रकरण मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है (नि० गा० ४६७५-६३ )।
प्रातः काल होते हो लोग अपने-अपने काम में लगते हैं- इसका वर्णन करते हुए लिखा है :- लोग पानी के लिये जाते हैं, गायों और शकटों का गमनागमन शुरू हो जाता है, वणिक कच्छ लगाकर व्यापार शुरू कर देता है, लुहार अग्नि जलाने लग जाता है, कुटुम्बी लोग खेत में जाते हैं. मच्छीमार मत्स्य पकड़ने के लिये चल देते हैं, खट्रिक मेसे को लकड़ी से कूटने लग जाता है, कुछ कुत्तों को भगाते हैं, चोर धीरे से सरकने लग जाते हैं, माली टोकरी लेकर बगोचे में जाता है, पारदारिक चुपके से चल देता है, पथिक अपना रास्ता नापने लग जाते हैं और यांत्रिक अपने यंत्र चला देते हैं - (नि० गा० ५२२ चू०)
शृंगार-सामग्री में नानाप्रकार की मालानों का (उ० ७. सू० १ से उ० १७. सू० ३-५) तथा विविध अलंकारों का (उ०७, सू० ७. उ० १७. सू० ६) परिगणन निशीथ मूल में ही किया गया है। तांबूल में संखचुन्न, पुगफल, खदिर, कप्पूर, जाइपत्तिया-ये पाँच चीजें डालकर उसे सुस्वादु बनाया जाता था (गा० ३९६३ चू०)।
नाना प्रकार के वाद्यों की सूची भी निशीथ (उ० १७. सू० १३५-८' में है। देशी और परदेशी वस्त्रों की सूची, तथा चर्मवस्त्रों की केवल सूची ही नहीं, अपितु वस्त्रों के मूल्य की चर्चा भी विस्तार से की गई है (नि० उ० २. सू० २३, उ० १७. सू० १२; गा० ७५६ से; उ० ७. सू०७ से)।
वस्त्रों को विविध प्रकार से सींया जाता था, इसका वर्णन भी दिया गया है-(नि० गा० ७८२)।
नाना प्रकार के जूतों का रोचक वर्णन भी निशीथ में उपलब्ध होता है। उसे देखकर ऐमा लगता है-मानो लेखक की दृष्टि से जो भी वस्तु गुजरी, उसका यथार्थ चित्र खड़ा कर देने में वह पूर्णतः समर्थ है (नि० गा० ६१४ से)।
सेमर की रूई से भरे हुए तकिये को 'तूली' कहते हैं । रूई से भरा हुआ, जो मस्तक के नीचे रखा जाता है, वह 'उपधान' कहा जाता है। उपधान के ऊपर गंडप्रदेश में रखने के
१. नि. गा० ३०७० चू० ; वृ० गा० १६६६ ।
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