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________________ ७६ निशीथ : एक अध्ययन लाट और सौराष्ट्र या दक्षिणापथ में कौन प्रधान है; इस विषय को लेकर लोग विवाद करते ये ( गा० २७७८) । महाराष्ट्र में 'श्रमणपूजा' नामक एक विशेष उत्सव प्रचलित था (३१५३) । - मगध में प्रस्थ को कुडव कहते हैं (गा० ५८६१) । दक्षिणापथ में ग्राठ कुडव प्रमाण एक मण्डक पकाया जाता है (३४०३) १ । दक्षिण पथ में लोहकार, कल्लाल जु गित कुल हैं जब कि अन्यत्र नहीं । लाट में गड, वरुड, चम्मकार ग्रादि जुगित हैं (५७६० ) । इत्यादि । वस्त्र के मूल्य की चर्चा में कहा गया है कि जघन्य मूल्य १८ 'रूपक' और उत्कृष्ट मूल्य शतसहस्र 'रूपक' है- (नि० गा० ६५७; बृ० गा० ३८६० ) । उस समय रूपक अर्थात् चांदी की कितने हो प्रकार की मुद्राएँ प्रचलित थीं, ग्रतएव उनका तारतम्य दिखाना ग्रावश्यक हो गया था। प्रस्तुत में, ये मुद्राएँ किस प्रदेश में प्रचलित थीं - यह अनुमान से जाना जा सकता है । मेरा अनुमान है कि ये मुद्राएँ उस समय सौराष्ट्र-गुजरात में प्रचलित रही होंगी; क्योंकि उत्तरापथ और दक्षिणापथ की मुद्राएँ अपने स्वयं के प्रदेश में उत्तरापथक या दक्षिणापथक या पाटिल-पुत्रक प्रादि नाम से नहीं पहचानी जा सकती। ये नाम ग्रन्यत्र जाकर ही प्राप्त हो सकते हैं । उन सभी प्रचलित 'रूपक' मुद्राओं का तारतम्य निम्नानुसार दिखाया गया है : १ रूवग (रूपक) = १ साभरकर ( साहरक ) अथवा दीविच्चग या दीविच्चिक ( दीवत्यक ) १ उत्तरापथक १ पालिपुत्रक (कुसुमपुरग) = २ उत्तरापथक = ४ साभरक = २ नेलप्रो = ४ दक्षिणापथक ४ = २ साभरक या २ दीविच्चग वैद्य को दी जाने वाली फीस की चर्चा के प्रसंग में भी मुद्राओं के विषय में विशेष जानकारी प्राप्त होती है । वह इस प्रकार है 'कौड़ी' ( कपर्दक ) जो उस समय मुद्रा के रूप में प्रचलित थी । उसे 'कडुग' या 'कबड्डुग' कहते थे । ताँबे की बनी मुद्रा या 'नायक' के विषय में कहा गया है कि वह दक्षिणापथ में 'काfort' नाम से प्रसिद्ध है। चाँदी के 'नाणक' को भिल्लमाल में चम्मलात (?) कहते हैं; बृहद् भाष्य की टीका में इसे 'द्रम्म' कहा है। सुवर्ण 'नाणक' को पूर्व देश में दीणार' कहते हैं। पूर्व देश में एक अन्य प्रकार का नाणक भी प्रचलित था, जो 'केवडिय' कहलाता था । यह किस १. बृ० गा० २८५५ में व्याख्या सम्बन्धी थोड़ा भेद है । २. सौराष्ट्र के दक्षिण समुद्र में एक योज्न दूर 'दीव' (द्वीप) था, वहाँ की मुद्रा - ( गा० ६५८ चू० ) आज भी यह प्रदेश इसी नाम से प्रसिद्ध है । ३. कांचीपुरी में प्रचलित मुद्रा । ४. नि० गा० ६५८-५६ ; बृ० ३८६१-६२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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