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सांस्कृतिक सामग्री :
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३६८९, ५εε३) । श्रार्यमंगू - जैसे प्राचार्य का उल्लेख है कि वे जब मथुरा में आये, तब श्रावकों ने उनकी हर प्रकार से सेवा की थी। यह भी उल्लेख है कि स्तेनभय होने पर एक साधु ने सिंहनाद किया था । अवन्ती जनपद और उज्जेणी का उल्लेख भी ध्यान देने योग्य है ( गा० १६, ३२, २६४-६, ५९.६३, चू० ) । श्राषाढ़भूति, धृर्ताख्यान आदि कथानकों का स्थान उज्जेणी नगरी है । कोसंबी नगरी (गा० ५७४४, ५७३३) तथा चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र का भी उल्लेख है । पाटलिपुत्र का दूसरा नाम कुसुमपुर भी है (गा० ४४६३) । सोपारक बंदरगाह का भी उल्लेख है ( ५१५६ ) । वहाँ णिगम अर्थात् वणिक् जनों के लिये कर नहीं था । एक बार राजा ने नया कर लगाना चाहा, तो वणिकों ने मर जाना पसंद किया; किन्तु कर देना स्वीकार नहीं किया ( गा० ५१५६-७) । दशपुर नगर में आरक्षितने वर्षावास किया था ( ४५३६) और वहीं मात्रक की प्रनुज्ञा दी थी । दितिप्रतिष्ठित (६०७६ ) नगर के जितशत्रुराजा ने घोषणा की कि म्लेच्छों का ग्रक्रमण हो रहा है, ग्रतः प्रजा दुर्ग का आश्रय ले ले। दंतपुर ( गा० ६५७५ ), गिरिफुल्लिगा] ( गा० ४४३६), प्रादि नगरियों का उल्लेख है ।
जनपदों के जीवन- वैविध्य की ओर लेखक ने इसलिये ध्यान दिलाया है कि कभी-कभी इस प्रकार के वैविध्य को लेकर लोग आपस में लड़ने लग जाते हैं, जो उचित नहीं है । अतएव देश कथा का परित्याग करना चाहिए (नि० गा० १२७) ।
जनपदों के जीवन- वैविध्य का निर्देश करते हुए जिन बातों का उल्लेख किया है, उनमें से कुछ का यहाँ निर्देश किया जाता है :-लाटदेश में मामा की पुत्री के साथ विवाह हो सकता है, किन्तु मौसी की पुत्री के साथ नहीं । कोसल देश में प्राहारभूमि को सर्व प्रथम पानी से लिप्त करते हैं, उस पर पद्मपत्र बिछाते हैं फिर पुष्पपूजा करते हैं, तदनन्तर करोडग, कट्ठोरग, मंकुय, सिप्पी - प्रादि पात्र रखते हैं । भोजन की विधि में कोंकण में प्रथम पेया होता है, और उत्तरापथ में प्रथम सत्तु । लाट में जिसे 'कच्छ' कहा जाता है, महाराष्ट्र में उसे 'भोयड़ा' कहते हैं । भोयड़ा को स्त्रियाँ वचपन से ही बांधती हैं और गर्भधारण करने के बाद उसे वर्जित करती हैं। वर्जन भी तब होता है, जबकि स्वजनों के संमिलन के बाद उसे पट दिया जाता है ( गा० १२६ चूर्णि ) । कोसल में शाल्योदन को नष्ट हो जाने के भय से शीतजल में छोड़ दिया जाता था ( गा० २०० ) । उत्तरापथ में गर्मी प्रत्यन्त अधिक होती है, अतएव किवाड खुले रखने पड़ते हैं - ( गा० २४७) । उत्तरापथ में वर्षा भी सतत होती हैं ( 50 ) | सिंधु देश का पुरुष तपस्या करने में समर्थ नहीं होता, किन्तु कोंकण देश का पुरुष तपस्या करने में अधिक सशक्त होता है (४२८) | टक्क मालव और सिन्धु देश के लोग स्वभाव से ही परुप वचन ( कठोर ) बोलने वाले होते हैं । (गा० ८७४) महाराष्ट्र में मद्य की दूकानों पर ध्वज बांध दिया जाता था, ताकि भिक्षु लोग दूर से ही समझ जाएं कि यहाँ भिक्षार्थं नहीं जाना है (११५८) । शिश्लेब जाति अन्यत्र घृणित मानी है, किन्तु सिंघ में नहीं ( १६१६) । महाराष्ट्र में स्त्री के लिये माडगाम = मातृग्राम शब्द प्रयुक्त होता है (निशीथ उ० ६, सू० १ ० ) महाराष्ट्र में पुरुष के चिह्न को बांधा जाता है ( गा० ५२१) । लाट में 'इक्कड' नामक वनस्पति प्रसिद्ध है। संभवतः यह सेमर (गुजराती - प्राकडा) है ( गा० ८८७) । पूर्व देश से विक्रय के लिये लाया हुआ वत्र लाट में बहुमूल्य हो जाता है ( गा० ६५१) । सौराष्ट्र में 'कांग' नामक धान्य सुलभ है (१२०४) ।
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