SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सांस्कृतिक सामग्री: ७१ स्तब्ध कर देना (नि० गा० ४६२ चू०); आभोगणी = भविष्य जान लेना (नि. गा० २५७२ चू०); प्रोणमणी = वृक्षादि को नीचा कर देना, उरणामणी = किसी वस्तु को ऊंचा कर दन। (नि. गा०१३); माणसी = मनोवांछित प्राप्त करना, (नि. गा० ४०६ चू०), आदि विद्यानों का उल्लेख मिलता है। इन विद्यानों की साधना और प्रयोग का उद्देश्य विरोधी को परास्त करके भक्तपान, औषधि, वराति आदि प्राप्त करना तथा राजा आदि को अनुकूल करना, आदि हैं। मन्त्रों का प्रयोग वशीकरण, उच्चाटन, अभिचार और अपहृत वस्तु की पुनः प्राप्ति ग्रादि के लिये होता था (नि० गा० ३४७, ४६०, १५७६, १६७,) । औषधि आदि के लिये धाउवायप्पश्रोग%3D चाँदी-सोना आदि धातुओं का निर्माण करने के प्रयोग (नि० गा० ३६८, १५७६) किये जाते थे। निमित्त ( निमित्त सम्बन्धी प्रायश्चित्त के लिये देखो, नि० सू० १.७.८ ) का प्रयोग करके राजा आदि को वश किया जाता था तथा किस प्राकृति के पात्र रखना- इसका निर्णय भी निमित से किया जाता था ( नि० गा० ४६०, १५७६, ७५३)। अंगुष्ठ प्रश्न, स्वप्न प्रश्न आदि प्रश्न विद्या के प्रयोग भी साधु करने लग गये थे ( नि० गा० १३६६)। चोरी गई वस्तु की प्राप्ति तथा ग्राहार और निवास पाने के लिए भी विद्या, मंत्र, चूर्ण, निमित्त आदि का प्रयोग होता था ( नि० गा० ८६४, १३५८, १३६६, २३६३ )। जोणीपाहुडनामक शास्त्र के आधार पर अश्वग्रादि के निर्माण करने का भी उल्लेख है (नि० गा० १८०४) । यदि किसी राजकुमार को साधु बना लेने पर राज-भय उपस्थित हो जाए, तो राजकुमार को अन्तर्धान करने के लिये मंत्र, अंजन आदि के उपयोग का विधान है। और यदि ऐसा संभव न हो तो राजकुमार को साध्वी के उपाश्रय में भी छिपाया जा सकता है-(नि० गा० १७४३ चू०)। अपनी बहन को छुड़ाने के लिये कालक प्राचार्य शकों को लाये और गर्दभीविद्या का प्रयोग करके शकों द्वारा गर्दभिल्ल को हराया-- यह कथा भी, जो अब काफी प्रसिद्ध है, निशीथ में दी गई है (नि० गा० २८६० चू०)। संयमी पुरुषों के लिये भ्रष्ट साधुनों तथा गृहस्थों की सेवा निषिद्ध है; किन्तु मन्त्र तन्त्र आदि सीखने के लिये अपवाद मार्ग है कि साधु, पासत्था और गृहस्थ को भी सेवा कर सकता है ( नि० गा० ३१० चू० ) कभी-कभी निमित्त प्रयोग करने वालों की परीक्षा भी ली जाती थी। कुछ अच्छे निमित्त-शास्त्री उसमें उत्तीर्ण होते थे। चूणि में इसकी एक रोचक कथा है। किन्तु यह स्वीकार किया गया है कि छमस्थ सदैव सच्चा निमित्त नहीं बता सकता और उसके दुष्परिणाम होने की सभावना भी है । ( नि० गा० ४४०५-८ ) अतएव साधु निमित्त विद्या का प्रयोग न करे। सांस्कृतिक सामग्री: निशीथ सूत्र और उसकी टीकानुटीकात्रों में राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि विविध विषयों की बहुमूल्य सामग्री बिखरी हुई मिलती है । उसका समग्र भाव से निरूपण करना, तो यहाँ इष्ट नहीं है। केवल कुछ ही विषयों का निर्देश करना है, जिससे कि विद्वानों का ध्यान इस ग्रन्थ की ओर विशेष रूप से प्राकृष्ट हो सके । १. प्रस्तुत सामग्री का संकलन निशीथ के परिशिष्ट बनने के पहले ही किया गया है। केवल प्रथम भाग का परिशिष्ट मेरे समक्ष है। अतएव यहां कुछ ही बातों का निर्देश संभव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy