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________________ निशीथ : एक अध्ययन राजानों द्वारा किये जाने वाले विविध उत्सव (नि० सू०८.१४), राजामों की विविध शालाएँ (८. १५-१६, ६. ७), उनका भोजन' और दानपिंड (८. १७-१८), राजा के तीन प्रकार के अन्तःपुर (गा० २५१४), अन्तःपुर के अधिकारी (गा० २५१६), राजा के विविध भक्तपिंड (नि० सू० ६.६), चंपा ग्रादि दश राजधानियाँ (६.१६), राजाओं के प्रामोद प्रमोद (६.२१), उनके विविध पशु और पशुपालक (६.२२), अश्वादि के दमक, मिठ और प्रारोह (६. २३-२५), राजा के अनुचर (६.२६) और दास दासी२ (६.२८) की रोचक गणना निशीथ में उपलब्ध है। टीकानों में उन शब्दों की व्याख्या की गई है, जो राजनैतिक विषय में संशोधन करने वालों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होगी । राजा की सवारी का आँखों देखा रोचक वर्णन है ।नि० गा० १२६ चू०) । ग्राममहत्तर, राष्ट्रमहत्तर, भोजिक आदि ग्रामादि के प्रमुख अधिकारी और राजा रक्षक आदि राज्य के अन्य विविध अधिकारियों की व्याख्या की गई है । भाष्य के अनुसार राजा, अमात्य, पुरोहित, श्रेष्ठी और सेनापति-यह प्राधान्य का क्रम है। किन्तु चूणि में- राजा, युवराज, अमात्य, श्रेष्ठो और पुरोहित हैं (नि० गा० ६२६६) । ग्राम, नगर, खेड, कब्बड, मडंव, दोणमुह, जलपट्टण, थलपट्टण, प्रासम, णिवेसण, णिगम, संबाह और राजधानी-इन सनिवेशों की स्पष्ट व्याख्या निशीथ में की गई है (नि० सू० ५. ३४ की चूणि)। चक्रवर्ती के 'सीयधर' का वर्णन है कि वर्षा ऋतु में उसमें वायु और पानी नहीं प्राता, शीतकाल में वह उष्ण रहता है और ग्रीष्म में शीतल (नि० गा० २७६४ चू०)। राजा श्रेणिक और अभय मंत्री की कई रोचक कथाएं निशीथ में उपलब्ध हैं-उनसे पता चलता है कि श्रेणिक अपने युग का एक विद्यानुरागी राजा था और वह विद्या के लिये नीच जाति के लोगों का भी विनय करता था। अभय उनका पुत्र भी था और मंत्री भी। वह प्रत्युत्पन्न मति था, और विषम से विषम परिस्थिति में भी अपनी कार्यकुशलता के लिये विख्यात था। ये पिता-पुत्र दोनों ही जिनमतानुयायी थे । . वीतिभय नगर-जो उज्जयिनी से ८० योजन दूर बताया गया है-के राजा उदयन और रानी प्रभावती की कथा रोचक ढंग से कही गई है। उसमें की कुछ घटनाएं बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि राणी के द्वारा उदयन को जैनधर्म में अनुरक्त बनाना, भगवान वर्धमान की प्रतिमा का उज्जयिनी के राजा प्रद्योत के द्वारा अपहरण, उदयन का अाक्रमण, मरुदेश में जला भाव के कारण उनके सैन्य की हानि, 'पुष्कर' तीर्थ की उत्पत्ति, उदयन द्वारा स्वयं प्रद्योत को युद्ध के लिये आह्वान और प्रद्योत का परातथा बंधन, अंत में दोनों में पारस्परिक क्षमा, १. राजा के विशेष आहार का नाम 'कल्लाणग' था-नि० गा० ५७२ । २. परदेशी जातियों के अनेक नाम इस सूची में हैं। ३. नि० ६८६, १३६५, १५६८; नि० सू० ४. ४०, ४३. ४६; गा० २८५२ । ४. नि, गा० १३ चू०; २५ चू०; ३२ चू० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001828
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAmar Publications
Publication Year2005
Total Pages312
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, F000, F010, & agam_nishith
File Size17 MB
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