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________________ श्रीपाल-चरित्र नगरी का राज्य तो हस्तगत नहीं करना चाहते? आज्ञा हो तो इसके लिये भी हम तैयार हैं।" श्रीपाल ने कहा- 'चम्पा नगरी का राज्य तो अवश्य किसी दिन हस्तगत करना है, किन्तु ससुर की सहायता से राज्य प्राप्त करना ठीक नहीं। मैं पहले विदेश की यात्रा करूँगा। अनेक देश देलूँगा। अपने बाहु-बलसे धनोपार्जन करूँगा। फिर बाद को जैसा उचित प्रतीत होगा, वैसा करूँगा।' इसी समय वहां कमलप्रभा आ पहुँची। उसने पुत्र को विदेश-गमन की तैयारी करते देख कहा;- “पुत्र ! यदि तू विदेश जायगा तो मैं भी तेरे साथ चलूंगी। तू ही एक मात्र मेरा जीवनधन है। मैं जीते जी तुझे अपनी आँखों के ओट न होने दूंगी।" श्रीपाल कुमार ने नम्रता पूर्वक कहा :- “माताजी! आपका कहना ठीक है; किन्तु परदेश में किसी प्रकार का बन्धन रहने से स्वेच्छा पूर्वक धनोपार्जन करने में बाधा पड़ती है। आप समझदार हैं। मैं भी अब नादान नहीं हूँ। मुझे केवल आपके आशीर्वाद की आवश्यकता है। मैं शीघ्र ही अनेक प्रकार की ऋद्धियाँ प्राप्त कर आपकी सेवा में उपस्थित होऊँगा।" ___ पुत्र की यह बातें सुन कमलप्रभा ने तुरन्त उसे आज्ञा दे दी। उसने समयोचित उपदेश देते हुए कहा :“जहाँ तक हो सके, शीघ्र ही लौट आना। विदेश में किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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