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पाँचवाँ परिच्छेद हैं। श्रीपाल को देखकर एक लड़की ने उस बुढ़िया से पूछा :- ‘माता ! घोड़े को नचाता हुआ यह जो सुन्दर पुरुष जा रहा है, सो कौन है? इन्द्र है, चन्द्र है या कोई चक्रवर्ती है?' बुढ़िया ने उच्च स्वर से उत्तर दिया कि :- 'बेटी! यह हमारे राजा जी के दामाद हैं।'
बुढ़िया की यह बात श्रीपाल ने सुन ली। उन्हें इसी समय स्मरण हो आया कि-जो लोग अपने गुण से प्रसिद्ध होते हैं, वे उत्तम कहलाते हैं। जो लोग अपने पिता के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, वे मध्यम होते हैं, जो लोग मामा के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, वे अधम कहलाते हैं और जो लोग अपने श्वसुर के नाम से प्रसिद्ध होते हैं, वे अधमाधम कहलाते हैं। श्रीपाल अपने मन में कहने लगे कि:-मुझे धिक्कार है, कि ससुराल में रहने के कारण अपने गुण और अपने नाम से नहीं बल्कि ससुर के नाम से पहचाना जाता हूँ। इस अवस्था का जैसे हो वैसे अन्त लाना चाहिये।
इस विचार के कारण श्रीपाल-कुमार का चित्त उदास हो गया। जिस समय वे महल में पहुँचे, उस समय भी उनकी यही अवस्था थी। पुण्य पाल उन्हें देखते ही ताड़ गया कि
आज अवश्य कोई नयी बात हुई है। उसने श्रीपाल से पूछा :'क्यों कुमारजी! आज आपके चेहरे पर उदासीनता की श्याम घटा क्यों दिखायी दे रही है? आपके हृदय में यदि कोई नयी भावना उत्पन्न हुई हो, तो उसे तुरन्त व्यक्त करें। हमलोग उसकी पूर्ति के लिये भरसक चेष्टा करेंगे। क्या आप चम्पा
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