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________________ श्रीपाल-चरित्र १४९ में बाधायें उपस्थित की, किन्तु आप शरीर की भी स्पृहा नहीं रखते, इसलिये वे आपको अपने भयंकर जाल में उलझा न सके। हे स्वामिन् ! आपको मोक्ष-मार्ग में अग्रसर होते समय राग-द्वेष नामक दो प्रबल चोर मिले। उन्हें आपने धैर्य रूपी वज्र से इस प्रकार मार गिराया, जिससे वे फिर आपकी ओर आँख उठाकर देखने की भी हिम्मत न कर सके। अनन्तर इस संसार-सागर को पार करने के लिये मार्ग खोज करने पर आपको अनेक मार्ग दिखायी दिये; क्योंकि जीवके जितने भेद हैं, उतने ही संसार-सागर के मार्ग होने के कारण ऐसा होना स्वाभाविक था। अतः आपने उन मार्गों से सरल मार्ग खोज निकालने के लिये, समता नामक योगनालिकासे देखना आरम्भ किया। इससे चित्त के अध्यवसाय की स्थिरता एवं मन, वचन और कार्य की एकाग्रता होने पर आपको अनेक मार्ग दिखायी दिये; किन्तु उनसे सिद्ध स्थान तक पहुँचना आपको असम्भव प्रतीत हुआ। अतएव आपने और भी सूक्ष्म दृष्टि से मार्गों का निरीक्षण किया। इस बार आपको उदासीनता नामक एक पगडण्डी दिखायी दी। वह भव-चक्र के भय से रहित थी, इसलिये आपने मन-वचन और काया की स्थिरता पूर्वक उसी पर चलना आरम्भ किया। आप बाह्य और आभ्यन्तरिक सब प्रकार के विकारों से रहित होने से एवं क्षमादि गुणों से युक्त होने से आपके इस मार्ग में कोई बाधा न दे सका। भिन्न-भिन्न नय-सम्मत भिन्न-भिन्न मार्ग आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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