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________________ बारहवाँ परिच्छेद एक दिन श्रीपाल कुमार राज सभा में बैठे हुए थे। उसी समय वहाँ कोई प्रवासी मनुष्य जा पहुँचा । उसने इधर-उधर की बातें करते हुए कुमार को बतलाया कि यहाँ से कुछ दूर दलपत्तन नामक एक नगर है । वहाँ धरापाल नामक राजा राज करता है। उसके सब मिला कर ८४ रानियाँ हैं। उनमें गुणमाला नामक रानी सबसे बड़ी है। उसने पाँच पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया है। उस पुत्री का नाम श्रृंगारसुन्दरी है। रूप और गुण में उसकी कोई समता नहीं कर सकता । जैसा अलोकिक उसका रूप है, वैसे ही अलौकिक उसके गुण हैं। पण्डिता, विचक्षणा, प्रगुणा, निपुणा और दक्षा नामक उसके पाँच सखियाँ हैं। राजकुमारी और उसकी इन पाँचों सखियों को जैनधर्म के शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान है। एक दिन राज- कन्या ने अपनी सखियों से कहा कि :- "हम लोगों को परीक्षा करने के बाद किसी विद्वान् और जैन धर्म के मर्मज्ञ के साथ ही विवाह करना होगा क्योंकि मूर्ख और विद्वान् का साथ पड़ जाने से जीवन ही नष्ट हो जाता है ।” ; ११६ पण्डिता नामक सखी ने कहा :- “कुमारी ! तुम्हारा कहना बिलकुल ठीक है । हम लोगों को परीक्षा का कोई उपाय अभी से सोच रखना चाहिये। मैं समझती हूँ कि हम लोगों को एक-एक समस्या तैयार कर लेनी चाहिये और यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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