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________________ ११५ श्रीपाल-चरित्र ऐसी बन्दर-घुड़कियों से श्रीपाल कब डरनेवाले थे! उसी समय उन्होंने निर्भयता पूर्वक उत्तर दिया:- “ हे मूखौं ! राज-कन्या ने तुम्हारे साथ विवाह न किया तो इसमें मेरा क्या दोष? मुझ पर क्यों नाराज होते हो? विधाता पर क्यों नहीं होते? अब तुम्हें यह भी सोचना चाहिये, कि राज-कन्या परस्त्री हो चुकी है। उसकी अभिलाषा करना-पर स्त्री की अभिलाषा करना है। अब तुम्हें इस पाप के कारण मेरे खड्ग रूपी तीर्थ में पवित्र होना पड़ेगा।" इतना कहते ही श्रीपाल कुमार ने म्यान से अपनी तलवार खींच ली और दो चार ऐसे हाथ दिखाये, कि उनके विरोधियों को भागना कठिन हो पड़ा। श्रीपाल का यह पराक्रम देख, देवता भी प्रसन्न हो उठे। उस समय उन्होंने आकाश से पुष्प-वृष्टि की। इससे राजा वज्रसेन को सीमातीत आनन्द हुआ। उन्होंने श्रीपाल से कहाः- "हे कुमार! जैसे आपने अपना पराक्रम दिखाया है, वैसे ही अब अपना रूप भी दिखाइये। अब अधिक समय हमें भ्रम में न रखिये।” राजा की यह बात सुन कुमार ने अपना प्रकृत रूप प्रकट किया। श्रीपाल कुमार का अद्भुत रूप देखकर राजा और उनके परिजन तथा पुरजनों को बहुत ही आनन्द हुआ। उसी दिन राजा ने बड़े समारोह से उनके साथ राजकन्या का विवाह करा दिया, और कुमार के रहने के लिए एक विशाल महल भी खाली करा दिया, अब श्रीपाल अपनी नव-विवाहिता रानी के साथ वहीं आनन्द-पूर्वक रहने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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