SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ बारहवाँ परिच्छेद इस प्रकार अनेक राजा महाराजाओं को नापसन्द कर, राज-कुमारी श्रीपाल के समीप पहुँची। वहाँपर वह ऐसे खड़ी हो गयी, जैसे कामदेव के समीप रति खड़ी हो। संसार में मीठे पदार्थों की कमी नहीं है। रुचि और पसन्दगी की बात है। जिसकी तबियत जिसपर जम जाती है, वही उसे सुन्दर, श्रेष्ठ और सर्वगुण-सम्पन्न मालूम होता है। राज-कुमारी पहले ही से श्रीपाल पर मुग्ध हो रही थी, इसलिये दूसरों पर अब उसकी तबियत ही न जमती थी। इतने में मणिमाला के अधिष्ठायक देवताने स्तंभ में लगी हुई एक पुतली में प्रवेश करके कहा:- “हे राज कुमारी। यदि तू वास्तव में चतुर और गुण-ग्राहक है, तो इस वामन को पसन्द कर !” यह दैवी-वाणी सुनते ही राज-कन्या ने उसी समय श्रीपाल के गले में वर-माला पहना दी। श्रीपाल ने इस समय अपना रूप और भी विरूप बना लिया। उन्हें देखकर अनेक राजाओं को बड़ा क्रोध आया । उनका हृदय प्रबल ईर्ष्याग्नि से जल उठा। वे कहने लगे:- “राज-कन्या इस वामन पर मुग्ध हो, तो भले ही इससे विवाह कर ले। किन्तु हमलोग अपने जीते-जी यह अनर्थ न होने देंगे।” वे लोग श्रीपाल को ललकार कर कहने लगे:- "हे वामन! यह सुन्दरी तेरे योग्य नहीं है, इसलिये तू अपने मन से ही वर-माला त्याग दे। अन्यथा हम लोग तेरा शिर काट डालेंगे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy