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________________ ११७ श्रीपाल-चरित्र घोषित कर देना चाहिये, कि जो हमारी समस्या की संतोषजनक पूर्ति कर देगा, वही हमारे तन-मन का अधिकारी अर्थात् हमारा पति होगा। जिस तरह एक दाना टटोलने से समूचे पात्र के अन्न की परीक्षा हो जाती है, उसी तरह हमारी समस्याओं से पात्र, कुपात्र और उसके गुण-दोष का पता चल जायगा।" पण्डिता की यह बात सब सखियों को पसन्द आ गयी, इसलिये उन्होंने एक-एक समस्या बना रखी है। अबतक हजारों आदमी जा चुके; किन्तु कोई भी उनकी समस्याओं का सन्तोष जनक उत्तर नहीं दे सका। श्रीपाल को तो यह बात सुनने ही भर की देर थी। ज्यों ही राज-सभा से वे अपने निवास-स्थान को लौटे, त्योंही उन्होंने उस मणिमाला के अधिष्ठायक देवता का स्मरण किया। उसी समय उसने कुमार को उनके आदेशानुसार दलपत्तन पहुँचा दिया। वहाँ पहुँचते ही वह राज-कुमारी के पास पहुंचे और उसे अपनी समस्या बतलाने को कहा। कुमारी ने अपनी सखियों की ओर संकेत किया। वे उसके संकेत को समझ गयीं। उसी समय उन्होंने राज-कुमारी की और साथ ही अपनी भी सारी समस्याएँ उनको कह सुनायीं। श्रीपालने सोचा कि, केवल समस्या-पूर्ति करने में ही कोई मजा नहीं है। समस्या-पूर्ति करने के साथ-साथ कोई चमत्कार भी अवश्य दिखाना चाहिये। उसी समय उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001827
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherJain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta
Publication Year2003
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size15 MB
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