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वराङ्ग चरितम्
अतिशय-अद्भुत विशिष्ट बात अथवा चमत्कारको अतिशय कहते हैं । तीर्थकरोंके ३४ अतिशय होते हैं । जन्मते ही मल, मूत्र, पसीना-राहित्य, आदि दश अतिशय होते हैं । कैवल्य प्राप्ति पर सुभिक्ष आदि दस होते हैं तथा १४ देवता करते हैं ।
अष्टादश दोष-१-भूख २-प्यास ३-भय ४-द्वेष ५-राग ६-मोह ७-चिन्ता ८-जरा ९-रोग १०-मृत्यु ११-स्वेद १२-खेद १३मद १४-रति १५-आश्रय १६-जन्म १७-निद्रा तथा १८-विषाद ये अठारह दोष हैं।
सर्ग २६ द्रव्य-गुण और पर्यायोंके समूहको द्रव्य कहते हैं । ये द्रव्य जीव, पुद्गल, (अजीव) धर्म, अधर्म, आकाश और कालके भेदसे छह प्रकारके हैं।
गुण-समस्त द्रव्यमें सब अवस्थाओं में रहनेवाली योग्यताओंको गुण कहते हैं। पर्याय-गुणके परिणमनको पर्याय कहते हैं । अस्तिकाय-बहुप्रदेशी द्रव्यको अस्तिकाय कहते हैं । कालके अतिरिक्त सब द्रव्य अस्तिकाय हैं ।
दर्शनोपयोग-जीवके श्रद्धानरूप परिणमनको दर्शनोपयोग कहते हैं । यह (9) चक्षु (२) अचक्षु (३) अवधि और (४) केवल के भेदसे चार प्रकारका होता है ।
ज्ञानोपयोग-जीवके ज्ञानरूप परिणमनको ज्ञानोपयोग कहते हैं । मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, केवल, कुमति, कुश्रुत तथा कुअवधिके भेदसे यह आठ प्रकारका होता है ।
दिव्यध्वनि-कैवल्य प्राप्तिके बाद तीर्थकरोंके उपदेशकी अलौकिक भाषा तथा भाषण शैलीका नाम है । इसका अपना रूप तो नहीं कहा जा सकता है पर इसकी विशेषता यही है कि यह विविध भाषा भाषियोंको ही नहीं, अपितु पशु, पक्षियोंको भी अपनी बोलीके रूपमें सुन पड़ती है । समवशरणमें उपस्थित सब प्राणी इसे समझते हैं । यह एक योजन तक सुन पड़ती है । इसे निरक्षरी भाषा भी कहा है। अर्द्ध मागधी भी इसकी संज्ञा है ।
पुद्गल-स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण युक्त द्रव्यको पुद्गल कहते हैं । परमाणु और स्कन्धके भेदसे यह दो प्रकारका है।
कार्माण वर्गणा-जो पुद्गल कार्माण (कर्म मय) शरीर रूप धारण करें उन्हें कार्माण वर्गणा कहते हैं । कर्मोंकी फल देनेकी शक्तिके अविभाज्य अंशको अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । समान अविभाग प्रतिच्छेदों युक्त प्रत्येक कर्म परमाणुको वर्ग कहते हैं और वाँक समूहको वर्गणा अर्थात् कर्म परमाणु समूह कहते हैं ।
प्रदेश-एक परमाणु द्वारा रोके जाने वाले आकाशके भागको प्रदेश कहते हैं।
असंख्यात-लौकिक अंक गणनाके अतिरिक्त शास्त्रोंमें लोकोत्तर अंक गणना बतायी है । इसके मुख्य भेद (१) संख्यात (२) असंख्यात तथा (३) अनन्त हैं । संख्यात भी तीन प्रकारका है-१-जघन्य संख्यात यथा २ (१ नहीं क्योंकि इसका वर्ग, घन, आदि एक ही रहेगा)। २- मध्यम संख्यात यथा ३से उत्कृष्ट संख्यात पर्यन्त और ३-उत्कृष्ट संख्यात, यथा जघन्य परीतासंख्यात पर्यन्त । अर्थात् उत्कृष्ट संख्यातमें एक जोड़ देने पर असंख्यात आता है । ___असंख्यात भी परीत, युक्त तथा असंख्यातासंख्यातके भेदसे ३ प्रकारका है । इन तीनोंमेंसे प्रत्येकके जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद होनेसे यह ९ प्रकारका है । जघन्य परीता संख्यातको निकालनेके लिए अनवस्था, शलाका, प्रतिशलाका कुण्डोंका सहारा लेना पड़ता है।
यार..... मायारामनारायणमान्य
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