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________________ A वराज चरितम् अक्षस्य संरक्षणमात्रमन्नं ते भञ्जते प्राणविधारणाय । प्राणाश्च ते धर्मनिमित्तमेव धर्मश्च निश्रेयसलब्धये सः ॥६०॥ सामान्यसत्काउचनशत्रमित्रा मानावमानेषु समानभावाः । लाभे त्वलाभे सदृशा प्रयोगास्ते वीरचर्या यतयो बभूवुः ॥ ६१ ॥ अखण्डचारित्रमहावतानाम गूढवीर्योरुपराक्रमाणाम् स्वकार्यसंपादनतत्पराणां कुतोऽपि नासीत्तपसि प्रसंगः ॥ ६२ ।। तेषामषोणां निरपेक्षकाणामनेकयोगवतभूरिभासाम् । क्लेशक्षयायैव समुत्थितानां तपोऽभिवृद्धिमहती बभूव ॥ ६३ ॥ त्रिंशः सर्गः RTERESTERTENDER वे उतना ही अन्न खाते थे जितना इन्द्रियोंको शक्तिको बनाये रखने के लिए आवश्यक था तथा दूसरा प्रधान उद्देश्य शरीर और प्राणोंका सम्बन्ध बनाये रखना था। प्राण रक्षाका भो उद्देश्य था अधिकसे अधिक धर्म कमाना तथा धर्मार्जनका । एकमात्र लक्ष्य मोक्ष महापदकी प्राप्ति ही थी ॥ ६० ॥ कांच-कञ्चन समान उन ऋषियोंकी दृष्टिमें सोना तथा मिट्टी दोनों ही समान थे, शत्रु तथा मित्र दोनोंपर उनकी एक ही दृष्टि थी, मान करनेसे प्रसन्न न होते थे तथा अपमानके कारण जरा भी कुपित न होते थे । लाभ तथा अलाभ दोनों ही उनके लिए निःसार थे। उनका आचरण वीरोंके उपयुक्त था तथा प्रत्येक विरोधी परिस्थिति में उनका एक-सा ही व्यवहार होता था ॥ ६१ ।। हा उनके अहिंसा आदि समस्त महाव्रत तथा अन्य चारित्रमें कहींपर भी कोई त्रुटि न थी। उनकी असाधारण सहन शक्ति तथा विशाल आत्मशक्तिकी थाह ही नहीं थी। वे अपने प्रधान लक्ष्य आत्मशुद्धिको प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्न करते थे। इन सब योग्यताओंके कारण उनके तपमें किसी भी तरफसे कोई रुकावट न आती थी॥ ६२ ॥ A E वे संसारकी समस्त वस्तुओंकी उपेक्षा करते थे। सदा ही अनेक विधिके व्रतोंका पालन तथा योगोंको धारण करते थे, इनसे प्राप्त तेजके कारण उनकी आभा बहुत बढ़ गयी थी। ऐसा प्रतीत होता था कि वे अपने समस्त क्लेशोंको क्षय करनेके लिए ही घर द्वार छोड़कर निकले थे। इन सब निरस्तराय प्रयत्नोंके द्वारा उन सब ही ऋषियोंकी तपस्यामें अप्रत्याशित वृद्धि हुई थी॥ ६३ ॥ १. [ सदृशप्रयोगा]। २. म मनूढ । [६२२) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education interational
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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