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________________ बराङ्ग चरितम् नृपो विरेजे मदशालिनीनां मध्ये स्थितः पार्थिवसुन्दरीणाम् । शशीव कान्त्या निजया समेतः सुतारकामध्यगतोऽम्वरे ह ॥ २१ ॥ यथालकायां सुरसुन्दरीभिः सहैव रेमे भगवान्महेन्द्रः। मदेत विभ्राजितलोचनाभी रेमे चिरं भूमिपतिस्तथैव ॥ २२ ॥ निजांशुभियाप्तदिगन्तराणि- ज्योतींषि पश्यन्प्रतिदर्शयंश्च । प्रियाङ्गनाभ्यः प्रियमावहंश्च निशामुखं भूपतिरघ्युवास ॥ २३ ॥ शरत्प्रदोषे विगताभ्रवृन्दानिवचित्रनक्षत्रगणाभिरामान् । विभासयन्ती भुवमन्तरिक्षमुल्का पपाताशु सविस्फुलिना ॥ २४ ॥ अष्टाविंशः सर्गः सम्राट के चारों ओर उनको रानियाँ बैठी हुयीं थीं यौवन मदके पूरमें सराबोर उन अनुपम सुन्दरो रानियोंके बीच में बैठे वरांगराज ऐसे मालम देते थे जैसा कि अपनी पूर्ण चन्द्रिकाके साथ आकाशमें उदित हुआ चन्द्रमा तब लगता है जब कि । उसके चारों ओर समस्त तारिकाएँ भी चमकती रहती हैं ॥ २१ ॥ देवराज इन्द्र अपनी राजधानी अलकापुरीमें स्वर्गीय सुन्दरियों अप्सराओंके साथ जिस निःशंक रूपसे विविध केलियाँ तथा विहार करता है । उसी प्रकार सम्राट वरांग आनर्तपुरोमें अपनी लोकोत्तर रूपवती पत्नियोंके साथ रमण करते थे। इन रानियों की बड़ी-बड़ी आँखें यौवन तथा मन्दिराके मदके कारण अत्यन्त मनोहर हो जाती थीं। २२ ।। रात्रिका प्रारम्भ प्रदोषमें गुरु, शुक्र, आदि ज्योतिषी देवोंके विमान आकाशमें चमक रहे थे, उनकी परिमित आभासे आकाशतल व्याप्त था। इन ग्रहों तथा तारोंको कान्ति से आकृष्ट होकर सम्राट स्वयं उन्हें देख रहे थे और अपनी रानियोंको दिखा रहे थे । इसी अन्तरालमें सम्राट प्राण-प्यारियोंको प्रसन्न करनेवाली अन्य चेष्टाएँ भी करते जाते थे। वे परिपूर्ण आनन्द मुद्रामें छतपर बैठे थे ॥ २३ ॥ वह शरद् ऋतुको रात्रिका प्रथम प्रहर था। आकाश मेघोंसे शून्य था फलतः अनेक भाँतिके अद्भुत तारोंकी आभासे से विभासित हो रहा था। ऐसे शान्त वातावरणसे युक्त आकाशसे अकस्मात् ही बिजली टूटी थी, उसके विस्फुलिंग ( तिलंगे) चारों ओर फैल गये थे और एक क्षणके लिए अन्तरिक्ष तथा पृथ्वी भी आलोकित हो उठे थे ।। २४ ।। बामग्राममाया-ASEAGERRITAS [५६०] १. क °लीनः] २. म व्याप्य । For Private & Personal Use Only www.jaipelibrary.org. Jain Education International
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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