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सप्तविंशः - सर्गः
स सप्तहस्तो जिनवर्धमानः पाश्वो जिनेन्द्रो नवहस्तवीर्घः। आद्यो जिनेशस्तु समुच्छयेण सवर्मणा' पञ्चधनः शतानि ॥४९॥ अथाष्टपञ्चाष्टकसंस्मितानामनानिर कुर्यात्क्रमशो जिनानाम् । दशाहताः पञ्चदशाथ पञ्च धनषि नाभेयसमुच्छ्रयात्तु ॥५०॥ शताहतं तच्च सहस्रमेकं द्विसप्तषड्व्याहतपूर्वनाम्नाम् । आयुस्स्मृतं नाभिसुतस्य सम्यग्द्विसप्ततिश्चाप्यजितस्य पूर्वाः ॥५१॥ स्यात्यष्टिरेका जिनशंभवस्य दशोदिता पञ्चसु तीर्थकृत्सु। क्रमेण च द्वे खलु पुष्पदन्तः श्रीशीतले त्वेकमुदाहरन्ति ॥ ५२॥
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तीर्थकरोंका उत्षेध अन्तिम तीर्थंकर श्री वर्द्धमान जिनराजके शरीरका उत्षेध (ऊँचाई ) सात हाथ प्रमाण थी। तेईसवें तीर्थंकर श्री पाश्र्वप्रभुके दिव्य औदारिक शरीरका उत्षेध केवल नौ हाथ प्रमाण था। इस विधिसे बढ़ते-बढ़ते शास्त्र कहते हैं कि प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ प्रभुके अपने प्रशस्त शरीरका उत्षेध ( पांच गुणित सौ अर्थात् ) पाँच सौ धनुष प्रमाण था ॥ ४९ ।।
महाराज नाभिनन्दनके पुत्र प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवके शरीरको ऊँचाईमेंसे क्रमशः ( पाँच गुणित दश ) पचासपचास धनुष कम करनेसे अजित आदि आठ तीर्थंकरों की ऊँचाई आती, तथा इसके आगे दश-दश धनुष कम करनेपर क्रमशः
शीतल, आदि पाँच तीर्थंकरोंका उत्षेध आता है। इसके आगे पाँच-पांच घटानेसे धर्मादि तीर्थंकरोंके उत्षेधका प्रमाण निकल | आता है, इस क्रमसे नेमिनाथका उत्षेध दश धनुष है ॥ ५० ॥
महाराज नाभिनाथके पुत्र श्री ऋषभदेव तीर्थंकरकी आयुका गणित इस प्रकार है-एक हजारमें सौ का गुणा करिये (एक लाख ) उसमें दो गुणित सात गुणित छह अर्थात् चौरासी लाख पूर्व वर्ष प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवकी आयु थी । द्वितीय तीर्थकर श्री अजितप्रभुकी अवस्था भी परिपूर्ण बहत्तर लाख पूर्व वर्ष थी ।। ५१ ॥
तीर्थकरोंकी आयु तृतीय तीर्थंकर श्री शंभवनाथको आयु केवल साठ लाख पूर्व शास्त्र बतलाते हैं। इनके बादके पाँच तीर्थंकरों अर्थात् श्री अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभु, सुपार्श्वनाथ तथा चन्द्रप्रभदेवकी आयुका प्रमाण क्रमशः दश, दश लाख पूर्व कम (५०, ४०, ३०, २०, १० ) थी। शास्त्रोंमें वर्णित नौवें तीर्थंकर श्री पुष्पदन्त प्रभुकी आयु दो लाख पूर्व वर्ष थी। श्री शीतल१. म सवर्षणा। २. [ संस्थिताना] ।
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