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________________ बराङ्ग सप्तविंशः - सर्गः पूर्णे तथा वर्षशते च तस्मादेकैकमुद्धत्य हि लोमखण्डम् । निष्ठा प्रयाते खलु रोमराशौ पल्योपमं तं प्रवदन्ति कालम् ॥१८॥ तेषां पुनः स्यादथ पल्यनाम्नां दशाहतां सा खलु कोटिकोटिः । प्रमाणमेतत्खलु सागरस्य निगद्यते वीतमलैजिनेन्द्रैः ॥ १९ ॥ ततश्च तस्माद्व्यवहारपल्याद्वालाग्रमेकं परिगृह्य सूक्ष्मम् । अनेककोटचब्दविखण्डितं तत्तस्यातिपूर्ण निचितं समन्तात् ॥ २० ॥ पूर्ण समासान्तशते' ततस्तु एकैकशो रोम समुद्धरेच्च । क्षयं च जाते खलु रोमपुञ्ज उद्धारपल्यस्य हि कालमाहुः ॥२१॥ टुकड़े किये जाय। जब वे और काटने योग्य न रहें तो उन रोमोंके टुकड़ोंसे उक्त गर्तको उसी तरह ठसाठस भर दें जैसा कि तिन्दु ( अलावा) भरा जाता है ॥ १७ ॥ इस विधिसे उक्त गर्त ( पल्य ) को भरा जानेपर जब एक सौ वर्ष व्यतीत हो जाट तो एक रोम खण्ड निकाला जाय । इस प्रक्रियासे एक एक रोम खण्डको निकालते-निकालते जितने समयमें पूरा पल्य खाली हो जाय और एक भी रोम शेष न रह १ जाय उस विशाल समयको राशिको 'पल्य' कहते हैं ॥ १८ ॥ व्यवहार-पल्य ___ करोडकोटिको कोटिसे गुणा करनेपर कोटि-कोटि संख्या निकलती है। पल्यके समयके प्रमाणमें दस कोटि-कोटिका गुणा करनेपर जो अपरिमित समय राशि आवेगी, उतने भारी समयको आठों कर्मों रूपी मलिनताको नष्ट करने वाले श्री एक-हजारआठ जिनेन्द्र देवने सागरका प्रमाण कहा है ॥ १९ ॥ व्यवहार पल्यके गर्तमें जो रोम भरे गये थे। उनमेंसे अलग-अलग एक-एक रोम-खण्डको अनेक करोड़ वर्षों पर्यन्त टुकड़ाटुकड़ा किया जाय। इन सूक्ष्ममातिसूक्ष्म रोमके खण्डोंसे दूसरे गर्तको भरा जाय। इस विधिसे गर्त परिपूर्ण हो जानेपर सौ-सौ । वर्षों बाद उसमें से एक-एक रोम खण्ड निकाल कर बाहर किया जाय ॥ २० ॥ [५.५] इस प्रक्रियाके अनुसार जितने समयमें रोम राशि समाप्त हो जाये, उन समस्त वर्षों के प्रमाणको शास्त्रकारोंने उद्धारपल्यका समय कहा है।॥ २१॥ NIRAHIRAIबामा १. म समाशान्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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