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________________ वराङ्ग चरितम् श्रुत्वा वचस्तस्य नराधिपस्य ते मन्त्रिणो राजसुतानुरक्ताः । प्रीत्या नरेन्द्रं प्रशशंसुरुच्चैः। समञ्जसं साधु वचस्तवेति ॥१८॥ तेषां पुरस्तात्स्वमनोगतार्थ राज्ञे तदा व्याहृतवाननन्तः । अन्या न तुल्याभिजनानुरूपां तां देवसेन्यां प्रविहाय कन्याम् ॥ १९ ॥ वैबाहिको नः कुलसंततिः सा स्थिरा च मैत्री ननु मातुलत्वात् । तस्मादहं योग्यतया तयाशु सुनन्दयेच्छामि विवाहकर्म ॥ २० ॥ श्रुत्वा ततोऽनन्तवचोऽजितस्तु जगाद वाक्यं पुनरन्यदेव । यत्प्रोक्तमेतेन वचस्तदस्मान्न प्रीणयत्येवमयुक्तिमत्त्वात् ॥ २१ ॥ द्वितोयः सर्गः ...HARMATHASTRATraiyeweapesale-SHIRPAIHOSSIPAHES करता है। अंग अंगसे फूटते हुये, सौन्दर्यको विचारनेपर तो वह दुसरा कामदेव हा मालूम देता है। अतएव अब हमें उसके विवाहको चिन्ता करनी चाहिये ।। १७ ।। मंत्रीसम्मति-अनन्तसेन मंत्री लोग राजपुत्रसे स्वयं भी पिताके समान स्नेह और आदरपूर्ण व्यवहार करते थे अतएव राजाके उक्त प्रस्तावको सुनकर उन्होंने प्रेम और भक्तिपूर्वक उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा-'हे महाराज? आपका कथन सब दृष्टियोंसे उचित और सर्वसाधारणका कल्याणकारी है ॥ १८॥ इसके बाद मंत्रियोंने अलग-अलग अपनी सम्मति दी थी। अतः क्रमानुसार सबसे पहिले अनन्तसेन महामात्यने कुमार वराङ्गके विवाहके विषयमें अपने मनोभाव निम्न प्रकारसे प्रकट किये थे-हे महाराज ? स्वास्थ्य, सौन्दर्य, शिक्षा, कुलीनता, आदि गुणोंमें, महाराज अनंतसेनकी राजदुलारी सुनन्दाको छोड़कर कौन दूसरी राजकुमारी हमारे कुमारकी योग्य बधू, हो सकती है ।। १९ ॥ इस प्रकारके सम्बन्ध करना (मामाकी लड़कीसे व्याह करना ) हमारे राजवंशकी प्राचीन परम्परा है, साथ ही साथ महाराज देवसेन राजकुमारके मामा हैं फलतः इस वैवाहिक सम्बन्धसे दोनों राजवंशोंकी मित्रता दृढ़तर हो जायगी। इसलिये मैं सुनन्दाके साथ राजकुमारका विवाह शीघ्रसे शीघ्र देखना चाहता हूँ क्योंकि वह हर तरहसे योग्य कन्या है ।। २० ।। अजितसेन महामात्य अनन्तसेनके अभिमतको सुनकर द्वितीयामात्य अजितसेनने दूसरा ही प्रस्ताव उपस्थित किया, उन्होंने कहाहे महाराज ? महामात्यने जो प्रस्ताव उपस्थित किया है वह युक्तिसंगत न होनेके कारण मुझे उतना अधिक नहीं जंचता है १. क द्रशशेकुरुच्चैः । २. देवसेवा ] । मामा-SHESHARIHSHARMSesame-SHREERAPawaaiye [२३] Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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