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________________ नाम पंचविंशः सर्गः यथैव लोके गुडमिश्रितानि पिष्टानि माधुर्यमभिवजन्ति । तपःप्रकृष्टरुषितानि यानि स्थानानि तीर्थान्यभवंस्तथैव ॥ ५२.।। यः कार्तिकेयः स तपश्चकार कुमारकाले भगवान्कुमारः। सिद्धि च तस्मिन्नतुलामवाप तेनाभवत्स्वामिगृह' पवित्रम् ॥ ५३ ॥ यस्याः कुमार्यास्तपसः प्रभावात्प्रकाशिता सा खल दक्षिणाशा। ततः कुमारी वरधर्मनेत्री बहुप्रजानामभवत्स तीर्थम् ।। ५४ ।। भागीरथिश्चक्रधरस्य नप्ता वर्षाण्यनेकानि तपः प्रचक्रे। अधोगतानुद्धरणाय धीरो भागोरथो पुण्यतमा ततोऽभूत् ॥ ५५ ॥ - ELISATOचाचार साधारण गृहस्थ भी जानता है कि किसी भी अन्नका आटा अथवा पोठोको गुड़में मिला देनेपर, स्वयं मधुरताहीन होनेपर भी, वह बिल्कुल मीठा हो जाता है । ठीक यही क्रम स्थानोंकी पवित्रताका है, जिन स्थानों पर घोर तपस्वी, परम ज्ञानी शुद्धात्मा ऋषियोंने निवास किया है वह तीर्थस्थान तथा उसका वातावरण भी उसी प्रकार पावक हो जाता है जैसे पिसान ।।५२।। तीर्थोंका इतिहास शंकरजीके पुत्र कुमार कार्तिकेयने विशेष आध्यात्मिक योग्यता प्राप्त करनेके लिए अपनी कुमार अवस्थामें ही जो घोर। तप किया था, उसके कारण उन्होंने अपनी उस सुकुमार अवस्था में हो ऐसी सिद्धि प्राप्त कर ली थी कि उसकी तुलना करना हो असंभव है। इस कारणसे ही स्वामि कार्तिकेयका तपस्थान ( कुमारगिरि ) परम पवित्र माना गया है ।। ५३ ॥ जिस कुमारीकी घोर तथा लम्बी तपस्याके प्रभावसे ही विशाल दक्षिण दिशा प्रकाशमें आयी थी, उसकी तपसाधना का ध्यान आज भी कुमारी-तीर्थ नामसे प्रसिद्ध है। तथा आदर्श धर्ममार्गको पथ-प्रदर्शिकाके रूपमें आज भी वह कन्याकुमारी । बहुसंख्य जनताके द्वारा श्रद्धापूर्वक पूजी जाती है ।। ५४ ।। सगर चक्रवर्तीके नाती राजा भागीरथने जिस स्थानपर एक दो नहीं अनेक वर्ष पर्यन्त घोर तप किया था, वह भी किसी व्यक्तिगत स्वार्थसे प्रेरित होकर नहीं, बल्कि जो पूर्वज अपने मन्द आचरणके द्वारा अधोगतिमें चले गये थे उनका उद्धार करनेकी अभिलाषासे अभिभूत होकर किया था। वह स्थान भी धीर वीर भगीरथके नामसे आज भी परम पवित्र तीर्थ [५०० । १. म°सामिगृहं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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