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________________ वराङ्ग चरितम् भवन्ति रोषान्नृपतेद्विजानां दिशो दश प्रज्वलिता इवात्र । द्विजातिरोषान्नृपतेः पुनः स्याद्भल्लातकस्नेह इवाश्मपृष्ठे ॥ ३२ ॥ ये निग्रहानुग्रहयोरशक्ता द्विजा वराका परपोष्यजीवाः । मायाविनो दीनतमा नृपेभ्यः कथं भवन्त्युत्तमजातयस्ते ॥ ३३ ॥ तेषां द्विजानां मुखनिर्गतानि वचांस्यमोघान्यघनाशकानि । इहापि कामान्स्वमनः प्रक्लृप्तान्' लभन्त इत्येव मृषावचस्तत् ॥ ३४ ॥ रसस्तु गौडो विषमिश्रितश्च द्विजोक्तिमात्रात्प्रकृति स गच्छेत् । सर्वत्र तद्वाक्यमुपैति वृद्धिमतोऽन्यथा श्राद्धजनप्रवादः ॥ ३५ ॥ तथोक्त मनुष्यवर्ग के नेता ब्राह्मणोंपर जब राजा की वक्रदृष्टि हो जाती है तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि उनके चारों ओर दशों दिशाओं में भयंकर ज्वाला भभक उठी है । और यदि राज्यके सभी ब्राह्मण सम्मिलित रूपमें राजाके विरुद्ध हो जाय तो उसका वही प्रभाव राजापर होता है जो कि भिलमें ( भल्लातक) के तेलको पत्थरको चट्टानपर बहानेसे हो सकता है। मनुष्यके मस्तक के समान पत्थर न फूलसे भी सूजता है ॥ ३२ ॥ सोचिये तो, कि जो ब्राह्मण न तो किसीको अनुचित कार्य अथवा पराभव के लिए शिक्षा ( सजा) ही दे सकते हैं, न प्रसन्न होकर किसीका कोई भला ही कर सकते हैं। साधारणसे कार्यके समान सिद्धि के लिए संसारभरके छल कपट करते हैं । जो सबसे अधिक दीन हो चुके हैं। इतना ही नहीं जिन विचारोंका भरण-पोषण ही दूसरोंकी कृपापर आश्रित है, वे ही ब्राह्मण समझमें नहीं आता क्यों कर राजाओंसे भी बढ़कर जातिवाले हो सकते हैं ? ॥ ३३ ॥ 'ऐसे दीन हीन ब्राह्मणों के मुखसे निकले हुए आशिष तथा अभिशापमय वचन कभी झूठ हो ही नहीं सकते हैं । उनके द्वारा कहे गये शुभकामनामय मंत्र निश्चयसे पापोंको नष्ट कर देते हैं। दूरकी तो बात हो क्या है; इस जन्ममें ही वे अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाती जिन्हें मनमें रखकर मनुष्य द्विजोंकी सेवा करता है।' ये सबको सब बातें सर्वथा असत्य हैं ॥ ३४ ॥ गुड़ समें यदि पहिले हालाहल विष मिला दिया जाय फिर किसी ब्राह्मणके सामने रखा जाय तो उस द्विजकी जिह्वा से मंत्र कह देनेपर ही बिना किसी रासायनिक प्रयोगके ही वह रस शुद्ध ईखका रस हो जाता है, ऐसा उन व्यक्तियोंका प्रचार है जो कि ब्राह्मणोंपर गाढ़ अंध आस्था रखते हैं ।। ३५ ।। १. म मनःप्रकर्षान् । Jain Education International For Private Personal Use Only पंचविशः सर्गः [ ४९५ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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