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________________ बराङ्ग त्रयोविंशः सर्गः परितम् HAREiterarianRRRR R चक्रासिनाराचवराङ्कशानां युग्मानि च स्वस्तिकबन्धनानि । श्रीमङ्गलार्थानि विभूतिमन्ति कान्ताकराग्रावधृतानि रेजुः ॥ ३९॥ तासामथाने तडिदप्रभासां रूपश्रिया हप्सरसा समानाः । सुगन्धिरक्तोत्पलवर्णपूरांस्तान्वर्णपूरानबलाः प्रणिन्युः ॥ ४० ।। पुण्याम्बुपूर्णान्विहितान'योजैरष्टाधिकांस्तत्र सहस्रमात्रान् । प्रस्पर्धयेवातिविलासवन्त्यो जहस्तरुण्यो वररुक्मकुम्भान् ॥४१॥ हसन्ति ये स्वाकृतिमत्तया च विलासिनीनां स्तनकुटमलानि । समृन्मयांस्तान्कलशाननेकान् जग्राह तोयैवनितासहस्रम् ॥ ४२ ॥ कन्याः स्मरास्त्रागतलक्ष्यभूताः प्रोद्भिद्यमानाः स्तनकुटमलिन्यः। शरावसंवधितवल्लरीभिः पिघाय माङ्गल्यघटान्प्रणिन्युः ॥ ४३ ॥ RMIRETARIANDER- R चक्रों, खड्गों, धनुषों तथा श्रेष्ठ अंकुशोंकी जोड़ियाँ, तथा स्वस्तिकोंकी मालाओं आदिको व्रतधारिणी स्त्रियां ही अपने हाथोंसे उठाकर ले जा रही थीं। इनकी विभूति अपार थी। इनकी उपयोगिता भी केवल शोभा और शकुन ही थे। इन चक्र, आदि मंगल द्रव्योंको ले जानेवाली स्त्रियोंकी कान्ति बिजलोके समान चमक रही थी ।। ३९ ।। इनके भी आगे-आगे जो देवियां चल रही थीं वे तीव्र सुगंधयुक्त तथा लाल कमलके समान गाढ़े और मनोहर रंगयुक्त। रंगोंकी सामग्रीको ले जा रही थीं। ये देवियाँ इतनो अधिक लावण्यवती थीं कि उनके सौन्दर्यकी तुलना अप्सराओंसे ही हो सकती थी ।। ४० ।। सबसे उत्तम श्रेणीके सोनेसे निर्मित एक हजार आठ कलशोंको जो कि पवित्र निर्मल जलसे भरे हुए थे तथा विकसित कमलोंसे ढके हुए थे। ऐसा प्रतीत होता था कि उन्हें स्प से ही प्रेरित होकर ही कुलोन तरुणियोंने उठा लिया था और जिनालयको ले जा रही थीं। सोनेके कलशोंके अतिरिक्त अनेक मिट्टीके घड़े भी पवित्र जलसे भर कर रखे गये थे ॥ ४१ ।। कलश यात्रा इन सब सुन्दर सज्जित कलशोंको भो हजारों स्त्रियाँ उठाकर लिये जा रही थीं। ये कलश ऐसे प्रतीत होते थे कि अपने सुभग आकारसे विलासिनी कुलबधुओंके स्तनरूपी कलियोंकी हँसी ही उड़ाते थे ।। ४२॥ ऐसी किशोरियाँ जो कि कामदेवके बहुत दूर तक भेदनेवाले आयुधोंका लक्ष्य बन चुकी थीं तथा जिनके सुकुमार स्तनरूपी कलियां उठ ही रही थीं वे छोटे-छोटे शरावों ( गमलों ) में लगी हुई सुन्दर लताओंके द्वारा ढके हुए मांगलिक कलशोंको १. क विहितान्ययोजः।। Jain Education International 400 For Privale & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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