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वराङ्ग चरितम्
आन्नान्तका दाडिममातुलुङ्गेबिल्वाश्च चूताः क्रमुकाभयाश्च । तालीद्रुमास्तालतमालवृक्षा बभूवुरुद्यानवनान्तरेषु ॥ ७० ॥ सुवर्णवासन्तिक कुब्जकानां बन्धूकगन्धोत्कट मल्लिकानाम् । समालती जात्यतिमुक्तकानां वीर्याभिरम्याणि वनानि रेजुः ॥ ७१ ॥ खजूरमृद्वीक मरीचवल्ल्यो लवङ्गकङ्कोलकनालिकेराः । ताम्बूलवल्ल्यः कदलीवनानि नित्यप्रवृत्तानि मनोहराणि ॥ ७२ ॥ अन्तर्बहिश्चापि समाप्तकर्मा प्रमाणसंबंधित दिव्यमूर्तिः । जिनेन्द्र गेहो रमणीयरूपः पुरस्य भूतां गणितां जगाम ( ? ) ॥ ७३ ॥
प्राप्त होती थी । इनके कारण जिनालयको शोभा और भी अधिक हो गयी थी ॥ ६९ ॥
जिनालय के उद्यान
इन वाटिकाओं और रम्य उद्यानोंमें आम्र, आमड़ा, अनार, मातुलिंग ( विजौरा, पपीता ), बेल, क्रमुक ( द्राक्षा ), अभया (ह), ताल, तालीदुम ( खजूर विशेष ), तमाल आदिके सुहावने वृक्ष लगे हुए थे ॥ ७० ॥
इन उद्यानोंमें अनेक प्रकारके फूलनेवाले पौधोंकी पंक्तियाँ खड़ी थीं, जिनके कारण वागोंकी शोभा एकदम चमक उठी थी। इन पुष्प वृक्षों में सुवर्ण ( हरिचन्दन ), वासन्ती, कुब्जक ( सेवती), बन्धूक ( मध्याह्नपुष्प ) अत्यन्त तीक्ष्ण गन्धयुक्त मल्लिका, मालती, जाती (चमेली) तथा अतिमुक्तक अग्रगण्य थे ॥ ७१ ॥
खजूर तथा नारिकेल वृक्षोंकी भी कमी न थी । द्राक्षा, गोल मिरच, लवंग, कंकोल ताम्बूल आदिकी सुकुमार सुन्दर लताएँ पुष्ट वृक्षोंके आसपास चढ़ी हुई अद्भुत सौन्दर्यका प्रदर्शन करती थीं। वाटिकाओं में सब ही जगह सुन्दर कदलीवन खड़े थे, ये सर्वदा ही हरे-भरे रहते थे ।। ७२ ।।
उत्तम स्थापत्य ( (निर्माण) कलाका अनुसरण करते हुए उक्त विधिसे उस जिनालयके भीतर तथा बाहरके सभी काम समाप्त किये गये । उसका प्रत्येक भाग आनुपातिक ढंगसे बनाया गया था फलतः उसका आकार सर्वथा दिव्य तथा मनोहर था । वह इतना अधिक रमणीय था कि उसे लोग आनर्तपुरकी महाविभूतियों में गिनने लगे थे ॥ ७३ ॥
१. [ वीथ्याभि ] । २. म मृवीक ।
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३. [ भूतेणितं ] ।
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द्वाविंशः
सर्गः
[ ४३७१
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