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________________ एकविंशः वराङ्ग चरितम् सर्गः अथैवमुर्वी तु वराङ्गनामनि प्रशासति न्यायपथेन भूभुजि । सुषेणमाता च सुषेणधीवरौ कृतापराधानिति' नैव शिस्यरे (?) ॥९॥ अहो क्षमा धैर्यमहो गभीरता वराङ्गनाम्नोऽमितसत्त्वतेजसः। सति प्रभुत्वेऽपि कृतापराधिनः कृपान्वितो नः सहते दुरात्मनः॥१०॥ विहाय मानं क्षममस्य दर्शनं पुरापि नास्मदचसि स्थितौ युवाम् । यदुक्तमेतद्व्यपद्यते यदि तदेव साध्वभ्युपगम्यतामिह ॥ ११ ॥ इति प्रधार्यात्मनि ते हिताहितं विनिश्चितार्थाः प्रणिपातनं प्रति । महाभयाकम्पितगात्रयष्टयो विविक्तवेशे प्राणिपेतुरीश्वरम् ॥१२॥ न्याय-निपुण राज यह वरांगनामधारी प्रतापी राजा नोति तथा धर्म-शास्त्रके मार्गके अनुसार पृथ्वीका शासन करता था। उसके न्यायमय राज्यमें सुषेणकी माता तथा उनका प्रधान सहायक कपटी मंत्री यह तीनों ही देशमें शान्त और सुखी न थे, क्योंकि इन लोगोंने अकारण ही राजा वरांगके प्रति घोर अपराध किया था ॥ ९ ॥ वे लोग कहते थे कि अनुपम पराक्रमी तथा असह्य तेजस्वी राजा वरांगके धैर्यको धन्य है, तथा उसकी क्षमाशक्ति और गम्भीरताका तो कहना ही क्या है। पूर्ण प्रभुत्वको प्राप्त करके भो हम सुनिश्चित अपराधियों पर करुणाभाव ही दिखाता है, और तो और हम सब दुरात्माओंको सुखपूर्वक रहने दे रहा है ।। १० ।। हृदय परिवर्तन इस समय वृथाभिमानको छोड़कर हम लोगोंको उससे क्षमा-याचना करनी चाहिये और दर्शन करने चलना ही चाहिये।' मंत्री रानी और सुषेण दोनोंको लहता था कोई कह रहा है 'देखो तुम दोनोंने उस समय भी मेरी सुविचारित प्रथम सम्मति को नहींमाना था-सो उसका फल सामने है, मैं इस समय भी जो कुछ कह रहा हूँ वही सर्वथा उपयुक्त है यदि तुम दोनोंको भी मान्य है तो विनम्रतापूर्वक इसे विचार कर लो ।। ११ ।। इस प्रकार आपसमें हित और अहितके विषयमें मतविनिमय करनेके बाद उन तीनोंने यही निर्णय किया था कि नूतन राजाके सामने नत हो जाना ही उनके लिए एकमात्र प्रशस्त उपाय था। तो भी उनका अपराध उन्हें भयाक्रान्त कर देता था । [४०२] जिससे उनके शरीर काँपने लगते थे, इसी अवस्थामें वे लोग एकान्त स्थानपर विराजमान राजा वरांगकी सेवामें उपस्थित हुए थे॥ १२ ॥ । १. क कृताषराधा निशि। २. म स्थितो । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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