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________________ वराङ्ग चरितम् STARCELATAAZAG JA मधुरवाक्यरसैरनुगच्छतः पुरजना नृपत स्ववशिष्यताम् । युवनृपेण दिवाकरतेजसा परबलोन्मथनाथंमतोत्युधैः (१) ॥ ५८ ॥ प्रबल के पतद्विगाकुला प्रथितमुत्तमनामपुरार्णवम् । ललितपूर्वपुराद्रिगुहामुखादभिसंसार च सैन्यनदी द्रुतम् ॥ ५९ ॥ तदनु सागरवृद्धिवणिक्पतिः शकटसार्थं सहस्र समन्वितः । नृपसुता शिबिकाग्र गतस्ततो बहुभटानुवृतः प्रययौ शनैः ॥ ६० ॥ गिरिगुहामुखकाननसंकटे पृतनां नरपतेर्व्रजतः परिपार्श्वतः । परिपालयन्नगमदिन्द्रसुतोपमविक्रमः ॥ ६१ ॥ युवनृपः ही उसके पाससे हटा ले । अरे! हे ! देखते नहीं हो वह किनारी बालिका घोड़े के नोचे दब जायगो, उसे एक तरफ कर लो।' इस प्रकारकी ध्वनियाँ ही उस समय सुन पड़ती थीं ॥ ५७ ॥ राजाके साथ मीठी-मीठी बातें करते हुए पोछे-पीछे चले आनेवाले नागरिकोंको महाराजने स्नेहपूर्वक लौटा कर मध्याह्न सूर्य के समान प्रतापी युवराज वरांगके साथ सगे सम्बन्धी (बहिनोई) पर आक्रमण करनेवाले शत्रुकी सेनाको छिन्न-भिन्न कर देने के लिये आगे बढ़े थे ॥ ५८ ॥ सैनिकोंकी उक्तियाँ उस समय सेना ऐसी लगती थी मानो-ललितपुर रूपी पार्वतोय गुफाके मुखसे निकल कर महाराज देवसेनकी सेना रूपी नदी, बड़ी तीव्र गतिके साथ जगद्विख्यात उत्तमपुर रूप समुद्रसे मिलने के लिए बहा जा रहो थो। उस सेना नदी के ऊपर फहराती हुई उन्नत पताकाएँ ऐसो प्रतीत होतो थों, मानो पक्षों हो उड़कर उनके ऊपर झपट रहे हैं ॥ ५९ ॥ सेना सौन्दर्य महाराज के पीछे-पीछे सेठ सागरवृद्धिका रथ चल रहा था, इनके साथ बहुमूल्य संपत्तिसे लदी हुई हजारों गाड़ियाँ चली जा रही थीं। इसके बाद राजपुत्रो सुनन्दा तथा मनोरमाको पालकियाँ चल रही थीं तथा उनको चारों ओरसे घेरे हुए असंख्य भट धीरे-धीरे चले जा रहे थे । ६० ॥ उन्नत पर्वत, भीषण गुफाओंके भीतर गहन काननों आदि संकटमय स्थानोंपर युवराज महाराज देवसेनके आगे पीछे तथा दाँयँ बाँयें चलते युवराज थे और वरांग पूरी सेनाका व्यवस्थितरूपसे संचालन भी करते थे। उस अवसर पर उनके सैन्य संचालनकी निपुणता और पराक्रमको देखकर इन्द्रके पुत्र ( अर्जुन ) का स्मरण हो आता था ।। ६१ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only TH विंशतितमः सर्गः [ ३९१ } www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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