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________________ बराङ्ग परितम् परुषवाक्यसमन्वितमीश्वरः समभिवीक्ष्य च पत्रगताक्षरम् । अतिकषायविषाञ्चितलोचनः प्रतिजगर्ज मगेन्द्र इव द्विपम् ॥ १७ ॥ यदि मदात्स' कुलोचितया तया प्रथितया धरया न हि संस्थितः । ध्रुवमहं विनिहत्य मदोद्धतं परनृपाय ददाम्यतिवर्तिनम् ॥१८॥ इति वचः सदसि प्रविलोक्य सः समजगर्ज' मृगेन्द्रपराक्रमः । सपरुषं प्रतिलेखविसर्जनं प्रतिविहाय तदैव ययौ पुरात् ॥ १९ ॥ परिवृतो नुपतिश्चतुरङ्गया रिपुमदप्रशमप्रदसेनया । चलदुरुध्वजचित्रपताकया स निविवेश' गताध्वनियोजनम् ॥ २०॥ विंशतितमः सर्गः शत्रुका पत्र कठोर तथा अशिष्ट वाक्योंसे भरा था। अतएव जब महाराज धर्मसेनने उस पत्रको खोलकर पढ़ा, तो उसके अक्षरोंको देखते ही क्रोधके आवेगरूपी विषसे उनके नेत्र लाल हो गये थे। क्रोधके उन्मादमें वह उसी प्रकार गर्ज पड़ा था जिस प्रकार सिंह हाथीको देखकर हुँकारता है ।। १७ ।। अपमानित धर्मसेन उस (शत्र) वंशमें क्रमसे चली आयी राज्यभूमिकी सीमाएँ निश्चित हैं। और उतनी ही धरा उसे पर्याप्त भी है, इस समय अहंकारमें पागल होकर यदि वह उतने हो राज्यसे सन्तुष्ट नहीं रहता है तो मैं निश्चय ही उस अहंकारीको युद्ध में मारूंगा। और उसके कुलक्रमागत राज्यको भी किसी दूसरे ऐसे राजाको दे दूंगा जो मेरी आज्ञा मानता होगा ।। १८ ।। हिरणोंके राजा केशरीके समान पराक्रमी महाराजने उक्त अति कठोर वाक्योंको राजसभामें कहकर क्रोधके कारण कितने और अपमानजनक वाक्योंको ऊँचे स्वरसे कहा था। इतना ही नहीं अत्यन्त अपमानजनक कठोर वाक्योंसे भरा उत्तर । भेज करके उसी समय नगरको छोड़कर लड़नेके लिए चल दिये थे ॥ १९ ॥ महाराज धर्मसेनकी चतुरंग सेना उद्धत शत्रुओंके अहंकारजन्य मदको उतार देनेमें अत्यन्त समर्थ थी, उसके ऊपर विशाल ध्वजाएँ तथा अनेक रंगोंकी अद्भुत पताकाएँ लहरा रही थीं। ऐसी सेनासे घिरे हुए महाराज धर्मसेनने एक योजन मार्ग चल चुकनेके बाद विधामके लिए पहिला पड़ाव डाला था।। २० ।। चाचELSELINE2ELEIRDERSEURGETROPERHIRE ENSOUNSELLEGETARY [३८२] १. क. "स्वकुलोचितया । २. म ददाम्यनुवतिनः । ३. [ समजगजंदथेन्द्र 11 ४. म प्रतिविवाय, [ प्रतिविधाय] । ५.क निनिवेश ।। Jain Education International For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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