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________________ एकोनविंशः वराङ्ग चरितम् सर्ग: muTHATRAPAHARMeare अथामितं तं शनकैरुपेत्य कश्चिटं सा तु विविक्तदेशे। मनोरमायाः सकलामवस्थां व्यजिज्ञपदागुपपत्तिदक्षा ॥ ५९॥ नयादपेतं बहुदोषमूलं निशम्य तस्या वचनं पृथश्रीः। कश्चिद्भटो मेरुरिवाप्रकम्प्यो न युक्तमेतद्विनयादवोचत् ॥ ६॥ एतचस्ते न च युक्तरूपं विभ्राजते कर्मणि नैव भासः । स्वदारसंतोषमणुव्रताख्यं साध्वीश्वरो' मह्यमुपादिदेश ॥६१ ।। इत्युक्तवत्युत्तमचारुरूपे कश्चिद्भटे सापि पुनर्जगाद । व्रतोपदेशात्समनुग्रहीतु मनोरमां नेच्छसि मे सखी ताम् ॥ ६२॥ प्रत्यक्षभूतं फलमुद्विहाय परोक्षपातं मगये झपार्थम् । न पण्डितस्त्वं बत बालिशोऽसि संदिग्धवस्तुन्यथ मुख्यमास्ते॥६३ ॥ समाचार-मचगामा enameARAMPARASIFALPIPARIA था-'हे आर्ये ! जितने भी सम्भव उपाय हैं उन सबके द्वारा मैं तुम्हारे मनोगत कार्यको पूर्ण रूपसे सिद्ध करूँगी ॥ ५८ ॥ नवप्रेमिकाकी शिष्ट दूती कुछ समय बाद ही वह कुशल सखी किसीको थोड़ा-सा भो आभास दिये बिना चुपचाप ही एकान्त स्थानपर अमित पराक्रमी कश्चिद्भटके पास जा पहुंची थो । वह वार्तालाप करनेकी कलामें दक्ष थी अतएव उसने मनोरमाकी पूरीकी पूरो प्रेमगाथा उसको सांगोपांग बता दो था ।। ५९ ॥ परम सुन्दर तथा लक्ष्मीवान् कश्चिद्भटने सखीके वचनोंको सुनकर ही समझ लिया था कि उसका प्रस्ताव नैतिकतासे हीन तथा अनेक दोषोंसे परिपूर्ण था। वह व्रती था अतएव इस प्रकारके विषयों में मेरुके समान अडिग था फलतः उसने अत्यन्त विनम्रताके साथ उससे कहा था कि 'आपका प्रस्ताव सर्वथा अयुक्त है ।। ६० ।। वरांगको स्थिरता देविजी! आपका प्रस्ताव किसी भी दृष्टिसे युक्त नहीं है, वह कार्यरूप दिये जाने पर बिल्कूल शोभा न पायेगा। इसके अतिरिक्त ऋषिराज वरदत्तकेवलीने अनुग्रह करके मुझे स्वदार (संतोष) व्रतकी दीक्षा भी दी थी।' ।। ६१ ।। अनवद्य सौन्दर्यके भण्डार कश्चिद्भटने जब उसे उक्त उत्तर दिया तो वह कुशल सखी चुप न रही, उसने पूछा था 'क्या आप अनुपम सुन्दरी मेरी उस सखी पर इसीलिए अनुग्रह नहीं कर सकते हैं, कि आपने केवलीसे स्वदार-अणुव्रतकी दीक्षा ली थी॥ ६२॥ [३७२ ____ यदि यही बात है तो मैं आपको बुद्धिमान नहीं मान सकती हूँ। हे वीरवर ! प्रत्यक्षरूपसे सामने उपस्थित फलको । १. क साध्वीति रामाञ्चमुपादिदेश। २. [ मुख्यता ते ] । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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