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________________ बराङ्ग चरितम् तमाप्तवन्तं बलवन्तमन्तं सूनोः समीक्ष्याशु स इन्द्रसेनः । शरासनं स्वं बलवद्विकृष्य मुमोच नाराचवराज्जिघांसन् ॥ ९६ ॥ तानन्तरिक्षे स्वधनुविमुक्तैवच्छिद्य तीक्ष्णैः पुनरर्धचन्द्रः । विव्याध बाणैरपरैं हद्भिर्वक्षयारं सोऽन्तमुपानिनीषुम् ' ॥ ९७ ॥ सन्तानमुक्तैव शिखैरनेकेगंजस्य नेता 'रमधो निपात्य । चकर्त भल्लेन शितेन रोषात्कश्चिद्भटस्तद्धनुरेन्द्रसेनम् ॥ ९८ ॥ परं न गृह्णाति धनुः स यावद्विव्याध तावद्भुजमुन्नतांसम् । गजेन्द्र कुम्भोद्भिदुरान्पृषत्कान्ससर्ज शुष्काशनिभीमरूपान् ॥ ९९ ॥ कश्चिद्भट-इन्द्रसेन युद्ध मथुराधिप इन्द्रसेनने देखा कि प्राणप्रिय पुत्रका काल कश्चिद्भट उसके अति निकट जा पहुँचा था । अतएव पुत्रकी मृत्युका प्रतिशोध लेनेकी भावनासे उसने अपने धनुषको पूरे बलसे खींचकर तीक्ष्ण विषाक्त बाणोंको उसपर बरसाना प्रारम्भ कर दिया था ।। ९६ ।। रणकुशल कश्चिद्भट अपने धनुष द्वारा अर्धचन्द्राकार मुखयुक्त अत्यन्त धाराल बाणोंको छोड़कर शत्रुके बाणोंको आकाशमें ही काटछाँट डालता था। इतना ही नहीं बीच अन्तरालमें वह बड़े-बड़े तीक्ष्ण बाणोंको चलाकर शत्रुके वक्षस्थलको भी भेदता जाता था । क्योंकि वह शत्रुको मृत्युके मुखमें हँसनेके लिए प्रतिज्ञा कर चुका था ।। ९७ ।। कश्चिद्भट अपने धनुषके द्वारा धाराप्रवाह रूपसे शत्रुके ऊपर वाणवर्षा कर रहा था अतएव इन अनेक बाणोंकी मारसे उसने इन्द्रसेनके हस्तिपकको नीचे गिरा दिया था। इसके बाद अत्यन्त कुपित होकर शत्रुपर चमचमाता हुआ भाला चलाया था जिसके आघात से इन्द्रसेनका धनुष ही कटकर टूक-टूक हो गया था ।। ९८ ।। इन्द्रसेन आहत वह दूसरे धनुषको उठा भी न पाया था कि इस सूक्ष्म अन्तरालमें ही उसने मथुराधिपकी विशाल बाहुको ऊँचे कंधे से ही काट दिया था, तथा भीषण वाण चला रहा था जो हाथी के उन्नत कुम्भोंको भेदते जा रहे थे। वे बाण क्या थे साक्षात् वज्र ही थे जो बिना बादलोंके ही भोम आकारको धारण करके गिर रहे थे ॥ ९९ ॥ १. [ निनीषुः ] । २. म नेतारमथो । Jain Education International For Private Personal Use Only अष्टादपाः सर्गः [३५१] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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