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________________ ILearn वराङ्ग चरितम् AADHAARATOPATGARAMETA उपेन्द्रसेनाहतशस्वस्ते निपेतुराश प्रतिमल्लनि । कश्चिद्भटप्रेरिततोमराणि बलाहकानावयवानभिन्दन् ॥ ४५ ॥ तौ वारणेन्द्रौ भवतस्तदानीं व्रणाननेभ्यः स्तरक्तधारौ। अष्टादशः उल्काभिघातक्षतभिन्नरूपौ यथा नगौ स्यन्दितधातुधारौ ॥४९॥ सर्गः असक्परिक्लिन्नतमाङ्गरागो गलोज्ज्वलत्काञ्चनरज्जुबद्धौ । सविद्युतौ सान्ध्यवर्भूतौ तौ विरेजतर्वारिधराविवेभो ॥५०॥ अन्योन्यमुक्तानि च तोमराणि सर्वायसान्यप्रतिमद्युतीनि। नभस्तले रेजुरतीव तानि सविधुदुल्का इव संपतन्त्यः ॥५१॥ उपेन्द्रसेनेन विमुक्तशक्तिः करेण वामेन निपात्य भूमौ ।। कश्चिद्भटो दक्षिणबाहुनाशु जघान शक्त्या हृदि सर्वशक्त्या ॥५२॥ तब उपेन्द्रसेनने पूरे बलके साथ अप्रतिमल्लपर शंकुओंको मारा था जो कि उसके सुदृढ़ मस्तकपर लगकर नीचे गिर गयी थी, किन्तु जब इसका उत्तर देते हुए कश्चिद्भटने तोमरोंको फेंकना प्रारम्भ किया तो उनके द्वारा बलाहकके अंग और अवयव ही कटने लगे थे ।। ४८ ।। कविकी पिनक उस दारुण संग्रामके बीच उन दोनों श्रेष्ठ हाथियोंको अनेक घाव लगे थे जिनमेंसे रक्तकी मोटी धार बह रही थीं। अतएव वे ऐसे लगते थे मानो उल्कापातके आघातसे पहाड़ फट गये हैं और उनमेंसे गेरू धुले हुए जलके झरने फूट पड़े हैं ।। ४९ ॥ घावोंसे बहते हुए रक्तके लेपसे उनके पूरेके पूरे शरीर खूब लाल हो गये थे, उनकी ग्रीवाओंपर अत्यन्त चमचमाती । हुई सोनेकी शृंखलाएं बंधी हुई थीं। अतएव उन्हें देखनेपर ऐसा आभास होता था मानो सन्ध्याके रागसे लाल हुए वारिधरों (मेघों) में बिजली चमक रही हो ॥ ५० ॥ वे दोनों ही एक दूसरे पर तोमरोंका प्रहार कर रहे थे जो पूरेके पूरे लोहेसे बने थे तथा स्वच्छता और मांजनेके कारण उनकी चमक अनुपम हो गयी थी । फलतः छोड़नेके उपरान्त जब वे आकाशमेंसे उड़कर गिरते थे तो चमकती बिजली युक्त वज्रके गिरनेकी भ्रान्ति हो जाती थी। ५१ ।। [३४०) इसी समय उपेन्द्रसेनने पूरे बलके साथ कश्चिद्भटके ऊपर शक्तिको चलाया था, जिसे उन्होंने अपने बाँये हाथसे रोककर । पकड़ कर भूमि पर फेंक दिया था तथा अपने दांये हाथके द्वारा तुरन्त ही सर्वशक्ति आयुधको चला कर उपेन्द्रसेनके हृदयपर । प्रबल प्रहार किया था ॥५२॥ For Private & Personal Use Only Jain Education international www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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