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________________ वराङ्ग चरितम् गदाश्च गुर्व्यः परिघा बृहन्तो निशातधारा दृढशक्तयश्च । निपात्यमाना युधि योधमुख्यैश्चक्रुः परास्तत्करिणः स्वयन्तुन् ॥ १३ ॥ अन्योन्यदन्तस्तु बलाद्गजेन्द्रा उपाट्य रोषाद्विस' तत्क्षणेन । स्वलोहिताद्वैरभिजघ्नुरन्यान्नीराजनायामिव तैरलातैः ॥ १४ ॥ योधान्गजस्योध्वंगतांस्तु केचित्सपूर्वमध्यान्तनिषादिनोऽन्यान् । संबन्धविद्धैनिशितैः पृषत्कनिपातयामासुरपेत्य धीराः ॥ १५ ॥ विनिश्चितार्था विजयस्य योधा धनुर्विमुक्तैरिषुभिः किरन्तः । उपेन्द्रसेनस्य बलं विशालं पराङ्मुखीचक्ररतुल्यवीर्याः ॥ १६ ॥ पराङ्मुखानामथ सैनिकानां पृष्ठेषु कान्ताननवीक्षितेषु । बाणा निपेतुर्दवतां जवेन पश्चार्धकायेषु च कुज्जराणाम् ॥ १७ ॥ महा बलिष्ठ प्रधान योद्धाओंके द्वारा उस समय भारी और विशाल गदाएँ, बड़े-बड़े परिघ ( चक्र के आकारका शस्त्र ) तथा अत्यन्त तीक्ष्ण धारयुक्त और उससे भी बढ़कर दृढ़ शक्तियाँ हाथियोंके ऊपर बरसायी जा रही थीं। जिनकी मारसे विचलित होकर हाथी ही नहीं मारते थे अपितु अपने महाव्रतोंको भी परास्त कर देते थे ॥ १३ ॥ हाथी इतने उत्तेजित हो गये थे कि वे क्रोधसे पागल होकर मृणालकी भाँति एक-दूसरेके दाँतोंको सूडसे बलपूर्वक उखाड़ लेते थे और रक्त से लथपथ अतएव तेज लाल रंगयुक्त उन्हीं दाँतोंको तुरन्त ही दूसरोंपर दे मारते थे । उनके द्वारा दाँतोंका फेंका जाना आरतीके समय फेंको गयी फुलझरियोंका स्मरण कराता था ।। १४ ।। कितने ही धीरवीर योद्धा हाथियोंके ऊपर हौदे में बैठे हुए शत्रुओंको अथवा आगे, बीच में या पीछेकी ओर बैठे हुए शत्रुके भटोंको एक ही साथ, भलीभाँति कसे गये तीक्ष्णधारयुक्त वाणोंसे भेदकर पृथ्वीपर गिरा देते थे ॥ १५ ॥ महामंत्री विजयके सैनिक लक्ष्य भेद में सिद्ध थे अतएव वे अपने धनुषोंसे फेंके गये वाणोंको बिल्कुल सटीक रूपसे शत्रुओंपर बरसा रहे थे । फल यह हुआ कि मथुराके युवराज उपेन्द्रसेनकी सेना संख्यामें विशाल होते हुए भी अनुपम पराक्रमी विजयकी सेना द्वारा पराङ्मुख कर दी गयी थी ।। १६ ।। Jain Education International युद्ध यात्रापर आनेके पूर्वं विदाके समय १. म सन् 1 २. [ रोषाद्विसवत् ] । शत्रु पराभवका प्रारम्भ कान्ताओंके मनोहर नेत्रोंके द्वारा देखी गयी पोठोंपर ही उस समय विजयके ३. क पराङ्मुखं । For Private & Personal Use Only अष्टादशः सर्गः [३३२] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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