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________________ सप्तदशः प्रवृतधूमाक्रतिधूसराणि नभोभुवं च प्रति तानि याति । असुग्विमिश्राणि रजांसि तत्र तान्येव सिन्धरवपूंषि बभ्रुः॥ ७० ॥ प्रशान्तरणौ चरणप्रचारे परस्परालोकविवृद्धवैराः । आहूय तान्नामभिरुग्ररोषाः पदातयो जघ्नुरतीव शूराः ॥ ७१ ॥ हयांस्तु जातिप्रवरान्विनीतानारुह्य कार्योद्वहने समर्थान् । विकृत्य कुन्तेष्वसिपाशहस्ता बलं रिपूणाममृदुः प्रसह्य ॥७२॥ अथेतरेऽप्यस्त्र कलाप्रगल्भाः भृशं द्विषद्भिः परिभूयमानाः । प्रति प्रधाव्याश्च सहस्रवृन्दैः समन्ततस्तान् रुरुधुः क्षणेन ॥ ७३ ॥ विशाल धारा भभक-भभक कर बह रही थी। जिसके द्वारा समरांगणकी समस्त धूल वैसे ही बैठ गयो थी जैसे वर्षाकालीन मेघों की मूसलाधारसे पृथ्वी पर उड़ती धूल जम जाती है ।। ६९ ॥ संहारमें कवित्वको अठखेलियाँ पहिले जो धूल खूब बढ़ी हुई धूम्रराशिके समान मलिन रंगको धारण करती हुई आकाशमें उड़ती दिखायी देती थी। वही धूल बादमें रक्तसे मिल जानेके कारण आकाशको ओर उठती हुई ऐसी प्रतीत होती थी मानों अवीर या सैन्दुरकी आंधी उड़े रही हो।। ७० ॥ उक्त रीतिसे धूलके बैठ जानेपर फिर युद्ध प्रारम्भ हो गया था। इस समय दोनों सेनाओंके शूर एक दूसरेको एक पग की दुरिपर ही देख सकते थे, अतएव इस दर्शनने उनकी क्रोधज्वालामें आहुतिका काम किया था। इसी कारण वे उस समय पहिलेसे बहुत बढ़कर शूर हो गये थे । पदाति क्रोधमें उन्मत्त होकर एक दूसरेको नाम लेकर बुलाते थे और मारक प्रहार करते थे ।। ७१ ॥ पुनः संघर्ष __ योद्धा उत्तम जातिके सुशिक्षित ऐसे घोड़ोंपर आरूढ़ होते थे जो उनकी उस समयकी लड़ाईको सफल करने योग्य थे। फिर जो भालोंकी मार, तलवार की काट पाशोंके फन्दोंको काटते हुए आगे बढ़ते जाते थे और शत्रुओंकी सेनाको निर्दयतापूर्वक कुचल देते थे॥७२॥ किन्तु दूसरे कुछ योद्धा युद्धकला तथा शस्त्र संचालनमें इनसे भी अधिक दृढ़ तथा कुशल थे । फलतः जब शत्रुके। अश्वारोहियों द्वारा उनका अपमान होता था तो वे दूसरे ही क्षण हजारों घोड़ोंपर सवार होकर उन सब पर प्रत्याक्रमण करते थे । और क्षणभरमें ही उन्हें ऐसा घेर लेते थे कि उन्हें निकल भागना असंभव हो जाता था ।। ७३ ॥ १.[मान्ति ]। २.[रिपूणां ममृदुः]। जाPिAIRETRAILWARASHTRIALORERAL Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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