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बराङ्ग चरितस्
भेंट, कुशलवार्ता के समाप्त हो जानेपर उसने क्रमशः सबको अपनी यात्रा के विवरण के प्रसंग में पुलिन्द सेनाका आक्रमण तथा पलायन, पुलिन्दपति महाकाल और युवराजकालका कालधर्म ( मृत्यु ) तथा कश्चिद्भटका वह तेज और पराक्रम जिसकी कोई समानता न कर सकता था, यह सब घटनाएँ लोगों को सुनायी थीं ।। ७० ।।
वीर ( कश्चिद्भट) पूजा
यात्रा विवरण सुनते ही उस नगरके शिल्पियों, कर्मकारों, वणिकों आदिकी अठारहों श्रेणियोंके प्रधानों तथा सागरवृद्धिने सन्मानपूर्वक कश्चिद्भटका स्वागत किया था तथा भेंट दी थी । अन्तमें सुन्दर तथा महत्ता के अनुरूप बेशभूषाको धारण करके बड़े भारी ठाट-बाटके साथ उसने उस नगर में प्रवेश किया था ।। ७१ ।।
पुलिन्दसेनागमनिर्गमौ
कालोoकालद्वयधर्मं कालम् । कश्चिद्भश्चाप्रतिपौरुषं च सर्वं तथाचष्ट यथानुवृत्तम् ॥ ७० ॥ अष्टादशश्रेणिगणप्रधानैः संपूजित: सागरवृद्धिना च । कश्चिद्भटश्चारुविशाल वेशो महाविभूत्या नगरं विवेश ॥ ७१ ॥ श्रेष्ठ ततः स्वं भवनं प्रविश्य व्याहृत्य कश्चिद्भटमादरेण । पृथक्पृथग्द्रव्यमनेकरूपं तत्तत्तु तस्मै कथयांबभूव ।। ७२ ।। इमाः स्वसारस्त्वनुजास्तवेमे इयं हि माता स्वजनस्तवायम् । इदं धनं पुत्रकमित्रवर्गः सर्वं त्वदायत्तमितः प्रविद्धि ॥ ७३ ॥ इत्येवमर्थाधिपतिस्तमर्थं सजीव निर्जीवमयत्न सिद्धम् । संदर्भ्य भूयः स्वजनैः समेतः सुखं कृतार्थः स्वगृहेऽभ्यवासीत् ॥ ७४ ॥
जब सागरवृद्धि अपने घरमें पहुँच चुके थे तो उन्होंने अत्यन्त वात्सल्य और आदरपूर्वक कश्चिद्भटको बुलाकर अपने घरमें पड़ी अनेक प्रकारकी अतुल सम्पत्तिको अलग-अलग करके दिखाकर उसे बताया था कि कहाँपर क्या पड़ा है ॥ ७२ ॥
तथा 'यह तुम्हारी बहिनें हैं, ये तुम्हारे छोटे भाई हैं, यह तुम्हारी माताजी हैं, ये तुम्हारे सेवक आदि आश्रितजन हैं। ये पुत्र -मित्र समस्त जनसमूह तथा यह समस्त सम्पत्ति तुम्हारे ही वशमें है ऐसा बिना भेदभाव के समझो || ७३ ।। सागरवृद्धिका सर्वस्व समर्पण
सार्थं पति इस प्रकार अपने आपही सदा बढ़ती हुई, अपनी स्थावर तथा जंगम संपत्ति, सजीव तथा निर्जीव विभव
२. क तनुजास्तमे ।
३. म तदायत्तं ।
४. [ स्वगृहेऽभ्यवात्सोत् ] ।
१. मी
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चतुर्दश: सर्गः
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