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________________ बराङ्ग चरितस् Jain Education International बालः कृशाङ्गः सुकुमारकोऽसि सुदुर्धरं युद्धमुखं हि भद्र । किमायुधेनास्स्व मयैव सार्धमित्युक्तवान्सार्थपतिः कुमारम् ॥ १० ॥ अथानयोर्व्याधिवणिग्ध्वजिन्योविद्युद्व पुश्चञ्चलशस्त्रवत्योः 1 शृङ्गाण्यदभ्राः पटहाश्च शङ्खा उद्वेजयन्तोऽतिभृशं विनेदुः ॥ ११ ॥ पुलिन्दनाथ बृहदुग्रवीर्यो द्विषट्सहस्रेण बलेन साकम् । शरोरुवर्षं प्रतिवर्षयन्तौ प्रत्युद्गतौ वन्यगजेन्द्रलीलौ ॥ १२ ॥ प्रत्यागतांस्तान्वणिजः समीक्ष्य पुलिन्दसेना ज्वलदग्निकल्पा । धनुर्धरास्तीक्ष्णमुखैः पृषत्केर मोघपातैविविधुविचित्रैः ॥ १३ ॥ ध्वनिको सुनकर युवराज वरांगने सेठके पास पहुँचकर कहा था - 'हे सार्थवाह ढालके साथ एक उत्तम खड्गको मुझे भी दिलाने को कृपा कीजिये ॥ ९ ॥ सेठ का स्नेह 'हे भद्रमुख सबसे पहिली बात तो यह है कि तुम सुकुमार युवक हो' दूसरे कष्टोंके कारण अत्यन्त दुर्बल और कुश हो गये हो, तीसरे तुम संभवतः नहीं समझते हो कि युद्धमें सामने जाना कितना कष्टकर और कठोर है। हे वत्स, हथियारका क्या करोगे, मेरे ही साथ तुम रहो।' इस प्रकार सार्थंपतिने समझाने का प्रयत्न किया था ।। १० ।। संघर्ष समारम्भ सार्थपति और पुलिन्दपति दोनोंकी ( ध्वजिनी ) सेनाएँ ऐसे तीक्ष्ण और घातक शस्त्रोंसे सज्जित थों जैसा कि चंचला बिजलीका शरीर होता है। ज्यों ही वे एक दूसरे के सामने आयीं त्यों ही दोनों तरफसे सींगोंके बाजे, नगाड़े, पटह और शंख भीषण रूपसे बजने लगे थे । वे साधारण लोगोंको व्याकुल और भीत करने के लिये काफी थे ॥ ११ ॥ काल और महाकाल दोनों व्याधपति स्वयं भी अत्यन्त बलशाली और उग्र थे तथा उनके साथ [ दो छह अर्थात् ] बारह हजार निर्दय सेना थी अतएव वाणोंको अत्यन्त वेगोंसे मूसलाधार वर्षाते हुये वे दोनों जंगली हाथियोंके समान संहार करते हुए सार्थंपतिकी सेना पर टूट पड़े थे ॥ १२ ॥ जलती हुई दावाग्नि के समान सर्वनाशक भोलों की उस सेनाको अपने सामने प्रहार करता देखकर ही सार्थंपति की सेना के सफल धनुषधारियोंने अत्यन्त तीक्ष्ण तथा विचित्र वाणोंके द्वारा भीलोंको सेनाको भेद दिया था। क्योंकि इनके वाण अपने लक्ष्यसे थोड़ा भी इधर-उधर न होते थे ।। १३ ।। For Private & Personal Use Only चतुर्दश: सर्गः [ २३८ www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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