SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम सर्ग , मंगलाचरण चरितम् । आदर्शकथा उपदेष्टा-श्रोता उपदेष्टाका कर्तव्य ग्रंथकार की प्रतिज्ञा विनीतदेश सौम्याचल उत्तमपुर महाराज धर्मसेन अन्तःपुर महारानी गुणवती द्वितीय सर्ग कुमार वरांग कुमारी अनुपमा राजकुमारकी विवाह वार्ता मंत्रशाला-मन्त्रणा मित्रशक्ति आदर्शनृप कन्या अन्वेषण-मंत्रीप्रस्थान कन्याके पिताको स्वीकृति विवाह प्रस्ताव वर-नगरको प्रस्थान अन्यराजा आगमन यौवराज्याभिषेक PARTeaveHEIRECTCrPAHEJe= विषयानुक्रमणिका १-१८ अभिषेक क्रम ३५ नाम-गोत्र-अन्तराय बन्ध १ पुण्यफल ३७ उपसंहार २ विवाहमंगल ३९ पञ्चम सर्ग ८२-९८ ३-४ पति-पत्नी अनुराग लोकपुरुष-अवलम्ब ५ तृतीय सर्ग ४१-५६ चतुर्गति ७ श्री वरदत्त केवली-विहार नरकगति-पटल-विल-वातावरण धर्मयात्रा-एवं यात्री नरकगति वाधा-बन्ध-जन्म ८ यात्रा वर्णन एवं राजवंश नारकी स्वभाव,-व्यवहार-दुःख केलि गुरु-विनय-स्तुति नारकी दुःख तथा कारण १२ गति-कर्मादि जिज्ञासा परस्त्री गमनका फल १५ ज्ञानमहिमा शास्त्रस्वरूप व्यर्थ परिग्रहका फल १७ पापपुण्यादि चर्चा ५४ अन्य दुःखसाधन १९-४० चतुर्थ सर्ग ५७-८१ असुरकुमारज-दुःख परिग्रह नरकका कारण १९ सृष्टा-कर्म विवेचन नरकायु-अकालमृत्यु नहीं २१ ज्ञानावरणी षष्ठ सर्ग ९९-११२ दर्शनावरणी-वेदनीय तिर्यञ्च योनि मोहनीय षट्काय, स्थावर-त्रस आयु-नाम-गोत्र स्थावर-वस पर्याय दुःख अन्तराय नासिका-कर्णजिह्वादि का फल स्थिति तियंञ्चों के वाहनादि भेद ज्ञानावरणी आदि के बन्ध करण भयपूर्ण तिर्यञ्च योनि १०४ ३० दर्शनावरणी-वेदनीय बन्ध कोप-मान-वञ्चना-लोभ फल २९ दर्शन-चरित्र मोहनीय विवेचन तिर्यञ्च जन्मके कारण ३१ क्रोधादि निदर्शन कुभोगभूमि-जन्मकारण ३२ नोकषाय कर्मभूमिज तियञ्च कुलयोनि ३४ आयुबन्ध ७७ उपसंहार ५७ १०० [२३] १०७ MMMMMou Jain Education interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy