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________________ वरांग चरितम् क्षीण हो गया था, तथा आस-पास कोई सहारा भी न था फलतः नकसे बचनेमें असमर्थ था। तब उसका हृदय विषाससे भर गया और वह सोचने लगा थ। ॥। ४ ॥ व्यपेतशार्दूलभयस्य मे पुनः किमेतदन्यत्समुपस्थितं महत् । द्रुतमाग्रपातोद्भवदुःखचेतसो बभूव भूयो मुसल' भिघातवत् ॥ ५ ॥ पुरे च राष्ट्र े च गिरौ महीतले महोदधौ वा सुहृदां च सन्निधौ । नभस्स्थले वा वरगर्भवेश्मनि न मुञ्चति प्राक्कृतकर्म सर्वथा ॥ ६ ॥ अयं विनिःप्रतिकारकारणः सुदुर्धरः किं करवाणि सांप्रतम् । विचिन्त्य कर्माणि पुरा कृतानि बभूव राजा सुविशुद्धभावनः ॥ ७ ॥ अनेकजात्यन्तरदुःखकार कान्कषायदोषान्विषमांस्तथाविधान् विसृज्य जग्राह महाव्रतादिकं परं च निःश्रेयससाधनात्मकम् ॥ ८ ॥ 1 आर्त एवं शुभचिन्त किसी उपाय सिंहका भय नष्ट होते ही मुझपर यह दूसरी महा विपत्ति कहाँसे आ टूटी ? यह तो वही हुआ कि कोई मनुष्य वृक्ष उन्नत शिखरपर से गिरके उसकी चोटों के दुःख को सोच ही रहा था कि उसपर फिर मूसलों की लगातार मार पड़ने लगी ।। ५ ।। पूर्व जन्ममें किये गये शुभ वा अशुभ कर्मों के फल जीवको कहीं भी नहीं छोड़ते हैं। चाहे वह अपने राज्यमें रहे या अपना नगर न छोड़े, चाहे पर्वत पर चढ़ जाये या महा समुद्रकी तहमें जाकर छिपे, चाहे भूतल पर ही एक स्थानमें दूसरे स्थान पर भागता फिरे, या मित्रों और हितषियोंसे घिरा रहे, चाहे आकाश में उड़ जाये अथवा खूब मजबूत तलधर में छिप जाये ||६|| कर्मों के फलों की अटलता की यह विधि ऐसी है कि कसो कारण अथवा योजनासे इनका प्रतीकार नहीं किया जा सकता है। यह तो जीवको ऐसा बाँधती है कि वह हिल भी नहीं सकता है। ऐसी अवस्थामें मैं क्या करूँ ?' उसने एक बार पुनः पूर्वकृत समस्त कर्मों की आलोचना की और कर्मोंको फल व्यवस्थाको निष्प्रतीकर (अपरिहार्य ) सोचकर अनित्य, अशरण, एकत्व आदि विशुद्ध भावनाओं को भाना प्रारम्भ किया ॥ ७ ॥ क्रोध आदि कषाय दोष ऐसे भयंकर है कि नरकादि विषम अवस्थाओं में घसीटते हैं तथा विविध जन्म-जन्मान्तरों में सब दुःखों को देते हैं अतएव उन्हें छोड़कर उसने अहिंसा आदि पांचों महाव्रतों को धारण किया था। क्योंकि यह महाव्रत ही मोक्ष प्राप्ति के परम शक्तिशालो साधन है ॥ ८ ॥ १. क मुशलाभि । Jain Education International For Private Personal Use Only त्रयोदशः सर्गः ( २१६] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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