________________
बराङ्ग चरितम्
Part-arke
इत्युक्तवन्तं गतवन्तमन्तं शास्त्रार्णवस्योत्तरमन्त्रिणं तम् । संपूज्य राजा वरहेमरत्नैरश्वोत्तमौ तौ विससर्ज तस्मै ॥ ३२ ॥ तेनाश्वशास्त्रक्रमको विदेन मासैश्चतुभिः परिपुष्टात्रौ । धूपाज्जनैर्मन्त्र पवित्रभूतैर्हयोत्तमौ तौ दमितौ यथावत् ॥ ३३ ॥ न्यायोपदेशेन च दान्त एको मायाप्रयोगेन तथा द्वितीयः । गृहीतशिक्षौ तपनीयभाण्डावादाय मन्त्री नृपमाससाद' ॥ ३४ ॥ पुराद्वहिर्मण्डलभूमिमध्ये आरुह्य सोऽश्वं जनतासमक्षम् । वीथीविभागैर्गमयन्सलीलं जहार सद्यो
युवराजचित्तम् ।। ३५ ।।
फलतः उसने खड़े होकर कहा था 'यदि कोई पुरुष मुझसे बढकर घोड़ा निकालनेवाला हो तो मैं उसके साथ कुछ दिनोंतक इन घोड़ों को शिक्षित करके देखूंगा कि कौन पहिले सुशिक्षित करता है ।। ३१ ।।
यह सब हो जानते थे कि उक्त मंत्री समस्त शास्त्रोंरूपी समुद्रोंके पारंगत है अतएव जब उसने पूर्वोक्त प्रकारसे उत्सुकतापूर्वक उत्तर दिया तो राजाने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, तथा उत्तम सुवर्णके आभूषण, रत्न आदि देकर उसका सन्मान करके उसको वह दोनों बढ़िया घोड़े निकालने के लिए दे दिये थे ।। ३२ ।।
प्रकृत मंत्री अश्वशास्त्र ( लक्षण आदि से घोड़ा पहिचानना, किस बातका घोड़े पर क्या असर होता है, इत्यादि सब ही बातें) तथा घोड़े की शिक्षा के क्रमका विशेषज्ञ था। उसने धूप, अञ्जन, मंत्र तथा अन्य प्रकारसे दोनों घोड़ों को पवित्र किया था। इसके उपरान्त उन दोनों हृष्ट-पुष्ट उत्तम घोड़ों को विधिपूर्वक चार माहतक पालतू बनाकर शिक्षा दी थी ।। ३३ ।।
एक घोड़ेको शुभ गतियों आदिकी न्याययुक्त (शुभ) शिक्षा देकर सर्वथा उपयोगी बनाया था तथा दूसरे को छल कपट करनेका अभ्यास कराके भयावह बना दिया था। निकाले जानेके बाद दोनों घोड़े ऐसे सुन्दर लगते थे मानो असीम द्रव्यसे भरे शुद्ध सोनेके कलश हैं । अन्त में इन दोनों घोड़ों को लेकर एदिकन मंत्री राजा के सामने उपस्थित हुआ था ।। ३४ ।।
नगरके बाहर एक वृत्ताकारविशाल क्रीड़ा क्षेत्र था, वहीं पर राजा और प्रजा नये घोड़ोंका कौशल देखनेके लिए एकत्रित हुए थे। सबके सामने मंत्री वहाँ सोधे घोड़े पर सवार होकर उसे नाना प्रकारको मुन्दर चालें चला रहा था, जिन्हें देखते ही युवक राजाका चित्त उन घोड़ों पर मुग्ध हो गया था ।। ३५ ।।
१. म आससार ।
Jain Education International
For Private
Personal Use Only
द्वादशः
सर्गः
[२०२]
www.jainelibrary.org