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________________ वराङ्ग चरितम् आज्ञापितास्ते वसुधेश्वरेण अमात्य सेनापतिमन्त्रिवर्गाः । श्रेष्ठिप्रधानाः पुरवासिनश्च वीथिप्रवेशोतकेतुमाला पर्णाविधानोज्ज्वलपूर्णकुम्भाः सुगन्धिसच्चन्दन कुङ्कुमावता महावस्त्राभरणा युवानः । संपादयांचकुरभीप्सितानि ॥ ५७ ॥ विन्यस्तनानाबलिभक्तिचित्राः । सतोरणालम्बितलोलमालाः ॥ ५८ ॥ गृहीत चित्रध्वजपाणयस्ते आजग्मुरत्युज्ज्वलचारुवेषाः ।। ५९ ।। पुराङ्गना मङ्गलयोग्यलीला: सलज्जिकाः सिज्जितभूषणाढ्याः । अलङ्कृताङ्गचः समदाः सलीलं समन्ततो निर्ययुरम्बुजास्थाः ॥ ६० ॥ कर और प्रिय होती थी अतएव जब राजाने उनके उक्त वचनोंको सुना तो उनसे सहर्ष सहमत होकर कुमारके राज्याभिषेककी तैयारी करनेकी आज्ञा दी थी ॥ ५६ ॥ पृथ्वी के प्रभु धर्मसेन द्वारा आज्ञा दिये जानेपर ही राज्यके आमात्यों, विभागीय मंत्रियों, सेनापतियों, सेठों तथा सेठों की श्रेणियों तथा समस्त पुरवासियोंने थोड़ा सा भी समय व्यर्थं नष्ट किये बिना, राजाके मनके अनुकूल प्रत्येक कार्यको सुसज्जित कर दिया था ॥ ५७ ॥ नगर सज्जा प्रत्येक मार्ग या गलीके प्रारम्भ होनेके स्थान ( मोड़ ) पर तोरण खड़े किये थे उनपर मालाएँ और ध्वजाएँ लहराती थी तथा उनके सामने सुन्दर मांगलिक चौक पूरकर उनपर पुष्प, फल आदि पूजाकी सामग्री चढ़ायी गयी थी। स्वागत द्वारके दोनों तरफ अत्यन्त उज्ज्वल मंगल कलश रखे थे जो कि निर्मल जलसे भरे थे और उनके मुख सुन्दर हरे पत्तोंसे भली-भाँति ढके थे । तोरणकी प्रत्येक ओर चंचल मालाएँ लहरा रही थी ॥ ५८ ॥ Jain Education International नगर के सब ही युवक बहुमूल्य कपड़े और गहने आदि को पहिनकर सुगन्धित चन्दन, कुकुम, आदि मांगलिक पदार्थों को उपयोग करते थे फलतः उनका वेशभूषा सर्वथा स्वाभाविक, अत्यन्त उज्ज्वल आकर्षक लगता था। इस प्रकार सजकर वे उत्सव की तैयारी में रंग विरंगे तथा सचित्र ध्वजाएं लेकर घूमते थे ॥ ५९ ॥ नगर की नायिकाओं की वेशभूषा तथा चेष्टाएं भी उत्सव के समय के अनुकूल थीं। वे स्वभाव से ही लजीली थीं तो भी उन्होंने उत्सव के लिए अंग, अंग का शृङ्गार किया था उनके भूषणों से मनोहर 'झुनझुन' ध्वनि निकलती थी । सबके मुख कमलोंके समान विकसित और आकर्षक थे। ऐसी युवतियां यौवनके मद और विलासके साथ नगरमें इधर-उधर आती-जाती रहती थी ॥ ६० ॥ For Private & Personal Use Only Jkk एकादशः सर्गः [१८८1 www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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