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________________ वराङ्ग दशमः चरितम् सर्गः तिर्यग्नराणां नरकामराणां महीपते क्षीणपुनर्भवानाम् । पृष्टा त्वया संसदि ते मयोक्ता यथाना गतयश्च पञ्च ॥ ५९॥ तासां चतस्रो गतयो गतीनां संसारसंज्ञाः कथिताः सुधीभिः । जरारुजामत्युविजिता ये निःश्रेयसायैव यतस्व राजन् ॥ ६०॥ धर्माभितप्तां वसुधां यथैव सुरेश्वरः प्रावृषि तोयसेकैः । प्राह्लादयत्साधपतिः सभां तां क्लेशादितां धर्मजलस्तथैव ॥ ६१ ॥ यती ब्रुवाणे जिनधर्मसारं राज्ञः प्रसन्न वदनं सरागम् । दिवाकरांशुप्रतिबोधितस्य पद्मस्य कान्ति सकलां दधार ॥ ६२ ॥ निशम्याशु धर्म बुधा मुक्तकामा यतीन्द्रस्य पार्वे तपस्स्था बभूवुः । गहीत्वार्थसंकल्पमल्पे। विजुः परे गेहधर्मे मतिं संनिदध्युः ॥ ६३॥ मायामाचा संसार एवं मोक्ष हे पृथ्वीपालक ! नारकियों, तिर्यञ्चों, मनुष्यों, अमरों तथा पुनर्भवको नष्टकर देनेवाले सिद्धोंके विषयमें जो आपने इस सभामें प्रश्न किये थे उनको उसी क्रमसे मैंने पाँचों गतियोंमें विभक्त करके आपको कहा है ।। ५९ ।। इन पाँचों गतियोंमेंसे प्रथम चार अर्थात् नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य तथा देवगतिको ही विद्वान् आचार्य संसार कहते हैं, किन्तु, जन्म, रोग, बुढ़ापा और मृत्युसे परे होने के ही कारण पंचमगतिको परम कल्याण (निःश्रेयस) कहा है, अतएव हे राजन् ! आप भी इसीकी प्राप्तिके लिए सतत प्रयत्न करें। ६० ।। ग्रीष्म ऋतुमें सूर्यके प्रखर आतपसे तपायी गयी धरिणीको देवताओंका प्रभु ( इन्द्र काव्य जगतकी मान्यताके अनुसार) वर्षा ऋतुमें मूसलाधार पानी वर्षा कर जैसे शान्त कर देता है। उसी प्रकार मुनियोंके स्वामी श्रीवरदत्त केवलीने सांसारिक क्लेशोंसे झुलसी गयी उस सभाको धर्मोपदेशरूपी जलको वृष्टि करके भलीभाँति प्रमुदित कर दिया था ॥ ६१ ॥ केवली महराजके धर्मोपदेश देते समय उनकी ओर उन्मुख रागयुक्त राजाका विकसित मुख ऐसा कान्त मालूम देता था मानो प्रातःकालके सूर्यकी किरणोंके पड़नेसे कमल खिल गया हो ।। ६२ ।। उपदेश-परिणाम श्रोताओंमें जो पुरुष विशेष ज्ञानी थे उन्होंने धर्मके सारको सुनकर तुरन्त ही समस्त सांसारिक अभिलाषाओंको छोड़१.[ संकल्पमन्ये । [१७३] Jain Education International For Private & Personal Use Only wwww.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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