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________________ दशमः सर्गः चरितम् कि वाहनाचैरगतिक्रियाणां किमासनाद्यैरपरिश्रमाणाम् । किमीक्षणैर्वा सकलार्थाभाजा' प्रश्नादिभिः किं सदसद्विदां च ॥ ५० ॥ स्नानादिभिः किं मलवजितानां तेजोमयानामथ तेजसा किम् । कि यक्तिभिनिष्ठितकर्मकाणां रागादिभिः कि विगतस्पहाणाम् ॥५१॥ किं वा गृहाद्यैः परिकर्ममुक्तैव्यंपेतशीतातपबाधनानाम् । शब्दादिभिः किं नरदेव बाह्यरलेपकानां जगदुत्तमानाम् ॥ ५२॥ यथैव चन्द्रोदधिभास्कराणां न चास्ति काचिद्धथुपमा नृलोके । तथैव तेषां परिनिष्ठितानां न विद्यतेऽन्या ह्य पमा नृलोके ॥ ५३॥ वर्णश्च वर्णस्य रसै रसस्य स्वरैः स्वरस्याप्युपमात्र यद्वत् । अतीन्द्रियाणामपि निर्वृतानामौपम्यसिद्धेर्न हि संभवोऽस्ति ॥ ५४ ॥ जिन्होंने गमन को क्रियाको छोड़ दिया है वाहनसे उन्हें क्या प्रयोजन ? जिन्हें किसी प्रकारकी थकान ही नहीं होती। है आसन उन्हें क्या सुख देगा? समस्त पदार्थोको हाथपर रखे आँवलेके समान देखने वालोंको क्या आँखोंकी आवश्यकता है ? भले तथा बुरेके विवेकके जो भण्डार हैं वे शंका, प्रश्न आदि करनेका कष्ट क्यों करेंगे ।। ५० ॥ जो सब प्रकारके मैलसे हीन हैं वे स्नान क्यों करेंगे? जो स्वयं तेजपुञ्ज हो गये हैं वे बाह्य ओज और प्रकाशकी अपेक्षा क्यों करेंगे? अपने समस्त कर्तव्योंको पूर्ण कर देनेवाले, योजनाएँ क्यों बनायेंगे? इच्छाओंके विजेता राग आदि भावोंको क्यों अपने में आने देंगे ॥५१॥ जो समस्त प्रकारके परिकरसे मुक्त हो चुके हैं, जिन्हें शीत, उष्ण, धूप आदिकी बाधा कष्ट नहीं दे सकती है वे किसलिए गृह आदि आश्रयकी चाह करेंगे? इसी प्रकार हे राजन् ! संसारके सर्वश्रेष्ठ सिद्ध जीवोंको, जो कि सब प्रकारसे अलिप्त हैं उन्हें शब्द, स्पर्श आदि बाह्य विषयोंकी इच्छा क्यों होगी ? ॥ ५२॥ सिद्ध-सुखके निदर्शन इस संसारमें चन्द्रमा, समुद्र, सूर्य आदि पदार्थोंकी किसी अन्य पदार्थ के साथ तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि उनके लिये कोई उपमान ( जिसकी उपमा दी जाती है ) ही नहीं मिलता है, इसी प्रकार परमपदमें स्थित सिद्धोंकी उपमा भी इस संसारके किसी पदार्थसे नहीं दी जा सकती है ।। ५३ ।। इस संसारमें किसी एक रंगकी उपमा दूसरे रंगोंसे दी जाती है इसी प्रकार एक रसको अन्य रसोंसे, तथा एक स्वरकी १. म सकलोमिलोकात् । २. म त्रिलोके । [१७१] www.jainelibrary.org. For Private & Personal Use Only Jain Education interational
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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