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बराङ्ग चरितम्
आ जन्मनोऽवस्थितकान्तरूपा आ जन्मनोऽम्लान सुगन्धिमालाः । आ जन्मनस्ते स्थिरयौवनाइच आ जन्मनः प्राप्तमनोऽभिरामाः ॥ ४४ ॥ नित्यप्रवृत्तातिशयद्धयुक्ता नित्यप्रवृत्ताधिकदीप्तिमन्तो
नित्यप्रवृत्तामलचारुहासाः ।
नित्यप्रवृत्तोरुसुखालयास्ते ।। ४५ ।। जरारुजा क्लेश शतैविहीनाः ।
समुल्लसत्कुञ्चितनील केशाः
अनस्थिकायास्त्वरजोऽम्बराश्च सर्वे सुराः स्वेदरजोविहीनाः ॥ ४६ ॥ अपेतनिद्राक्षिनिमेषशोका महीतलस्पर्शविमुक्तचाराः ।
नभश्चरा यानविमानयाना अनूनभोगा दिविजा रमन्ते ॥ ४७ ॥
ही वे पूर्णिमा चन्द्रमाके समान शीतल और कान्तिमान् होते हैं। उनके स्वभावतः सुन्दर अंगोंपर किसी अन्य व्यक्तिकी सहायता के बिना ही सुन्दर अलंकार दिखायी देते हैं इसी प्रकार बाहरी सामग्री जुटाये बिना ही उनकी देहसे अद्भुत सुगन्धयुक्त गन्ध आती है ।। ४३ ।।
जन्मके क्षणसे हो उनका रूप अत्यन्त कमनीय और कान्त होता है तथा पूरे जीवन भर उसमें न ह्रास होता है और न वृद्धि, जो सुगन्धित मालाएँ जन्मके समय उनके गलेमें पड़ती हैं वे जोवन भर उनका साथ नहीं छोड़ती हैं। जन्मके क्षण में ही वह युवा अवस्थाको प्राप्त कर लेते हैं। जो कि स्थायी होता है तथा जोवनके प्रथमक्षणसे आरम्भ करके जीवन भर उन्हें इष्ट पदार्थोंकी निर्बाध प्राप्ति होती है ॥ ४४ ॥
उनकी परम पूर्ण असाधारण ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ सर्वदा उनकी सेवा करती हैं, उनकी हृदयाकर्षक तथा निर्मल मुस्कान भी कभी रुकती नहीं है, कभी भी म्लान न होनेवाली उनकी द्युति भी निरन्तर जगमगातो ही रहती है तथा उन्हें प्राप्त महासुख भी बिना अन्तरालके हर समय उनका रंजन करते हैं ॥ ४५ ॥
देव- वैशिष्टय
उनके लहराते तथा घुँघराले सुन्दर बालोंका रंग नीलिमा लिये होता है, बुढ़ापा, रोग तथा वहाँ सुलभ सैकड़ों रोगोंसे वे सब प्रकार बचे हैं, उनकी देहों में हड्डी नहीं होती है, न उनके कपड़ोंपर कभी धूल ही बैठती है इसी प्रकार किसी भी देवको न पसीना आता है और न रज-शुक्रका स्राव ही होता है ॥ ४६ ॥
न तो उन्हें नींद आती है, न उनकी आँखें कभी पलक झपाती हैं और न उन्हें कभी किसी कारणसे शोक ही होता है । वे चलते अवश्य हैं पर उनके पैर पृथ्वी नहीं छूते हैं, आकाशमें भी वे अपने-अपने वाहन विमानोंपर आरूढ़ होकर चलते हैं तथा उनके समग्र भोग समस्त प्रकारकी त्रुटियोंसे रहित होते हैं ॥ ४७ ॥
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नवमः
सर्गः
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