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वरांग
अष्टमः सर्ग:
चरितम्
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अष्टमः सर्गः षट्कर्मधर्माभिरताः सुवेशा द्वात्रिंशदेवाश विबेहसंज्ञाः । ऐरावतो भारतवर्षसाह्वस्ताभ्यां चतुस्त्रिशदुदाहरन्ति ॥१॥ ते पञ्चभिः संगुणिता नरेश शतोत्तरा सप्ततिरेव वा स्युः । आर्यास्त्वनार्या द्विविधा मनुष्यास्तत्रोद्भवन्तीत्यूषयो वदन्ति ॥ २ ॥ ये सिंहला बर्बरकाः किराता गान्धारकाश्मीरपुलिन्दकाश्च । कामबोजवाह्रोकरखसौद्रकाद्यास्तेऽनार्यवर्ग' निपतन्ति सर्वे ॥३॥ इक्ष्वाकुहर्य ग्रकरुप्रधानाः सेनापतिश्चेति पुरोहिताद्याः। धर्मप्रियास्ते नृपते त एव आर्यास्त्वनार्या विपरीतवृत्ताः॥४॥
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अष्टम सर्ग
कर्मभूमि संख्या इस जम्बूद्वीपके ही विदेह खण्डमें सुमेरुको पूर्व और पश्चिमदिशामें सोलह-सोलह सुन्दर देश ऐसे हैं जहाँके निवासी असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, गोरक्षा और सेवा इन छहों कर्मोंको करके जीवन व्यतीत करते हैं, इनके अतिरिक्त उक्त द्वीपके
उत्तर और दक्षिणमें स्थित ऐरावत और भरतक्षेत्रके निवासियोंका भी यही हाल है फलतः उक्त बत्तीसमें यह दो जोड़ देनेपर । जम्बूदीपमें ही चौंतीस कर्मभूमियाँ हो जाती हैं ।। १॥
हे नरेश ! इस संख्या पाँचका गुणा ( क्योंकि 'धातकीखण्ड' और 'पुष्कराई' में जम्बुद्वीपसे दुगुने क्षेत्र, पर्वत आदि हैं) करने पर कुल कर्मभूमियोंकी संख्या ( सौ ) अधिक सत्तर अर्थात् एक सौ सत्तर हो जाती है। केवली भगवानने कहा है कि इन कर्मभूमियोंमें जन्म लेनेवाले लोग आर्य और अनार्यके भेदसे दो प्रकारके होते हैं ॥ २॥
आर्य-अनार्य देश सिंहल ( लंका ) में जन्मे लोग, साधारणतया जंगलोंके निवासी वर्वर या आटविक किरात ( भील, गोंड आदि), । गान्धार, काश्मीरमें उत्पन्न हुए लोग, पुलिन्द ( संथाल, आदि ) कम्बोज, वलख ( वाल्हीक ), खस, औद्रक ( उण्ड्र निवासी) आदि मनुष्योंकी गणना अनार्योंके समूहमें की गई है ।। ३॥
इक्ष्वाकुवंश, हरिवंश, उग्रवंश ( यादव आदि ) कुरुवंश आदि अग्रगण्य कुलोंमें उत्पन्न हुए राजा आदि, उनके मंत्री, । १.क चार्यबर्गे। Jain Education internationale
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