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बराङ्ग
PUBामाचाच
सप्तमः - सर्गः
चरितम्
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दुःखाय शस्त्राग्निविषं परेषां भयावह हेममुवाहरन्ति । संताडनोद्वन्धनवाहनैश्च दुःखान्यवाप्नोति गवादिदेयम् ॥३६॥ भूमिः पुनर्गर्भवती च नारी कृष्यादिभिर्याति वधं महान्तम् । तदाश्रयाः प्राणिगणाश्च यस्माद्भदानमस्मान्न विशिष्टमाहः ॥ ३७॥ देशे च काले गुणवत्प्रदत्तं फलावहं तद्भवतीति विद्धि । लोकप्रसिद्ध व्यवहारमात्रा'दृष्टान्तमेकं शृणु कथ्यमानम् ॥ ३८ ॥ कपात्प्रसन्नैकरसं जलं यद्विसुज्यमानं सरणीमुखेन । तदेव नानारसतां प्रयाति द्रव्याण्युपाश्रित्य पृथग्विधानि ॥ ३९ ॥ पयो भवेद्धेनुनिपीतमम्भः शुण्ठ्या कटुत्वं मधुरं कदल्या।
तथेक्षुणा तैर्गुडशर्कराद्यैः कषायसारः क्रमुकाभयाभ्याम् ॥४०॥ विवाहके समय कन्याके साथ यौतक ( दहेज ) रूपसे दिये गये खड्ग आदि शस्त्र, अग्नि तथा अग्निके साधन, विषादि परम्परया दूसरोंके दुःखके कारण होते हैं, दहेजमें दिया गया सोना और धन उक्त उपायोंका साधन होनेके कारण तथा चोरादिके कारण भयको उत्पन्न करता है तथा जामाताको दिये गये गाय, बैल आदि पशु तो साक्षात् ही पिटना, बँधना, जलाया जाना आदि अनेक दुःखोंको भरते हैं ।। ३६ ॥
गर्भवती स्त्री तथा खेती आदिके उपयोगमें आनेवाली भूमि ये दोनों ही अपनी जनन शक्तिके कारण महान संहारका कारण होती हैं, क्योंकि इनके उत्पादक स्थलोंपर रहनेवाले अनेक प्राणी हल आदि चलाते हो मर जाते हैं फलतः इन दोनोंके दानमें कोई विशेषता नहीं है ।। ३७ ।।।
वही देय वस्तु ठीक समयसे उपयुक्त क्षेत्रमें यदि किसी गुणवान व्यक्तिको दी जाती है तो निश्चयसे उसका परिणाम उत्तम होता है। इसे ही समझनेके लिए व्यवहारकी प्रधानताको बतलानेवाला संसारमें अत्यधिक चालू एक उदाहरण सुनिये मैं कहता हूँ ।। ३८ ॥
दान कथा कुएँका एक ही रसयुक्त निर्मल जल जब किसी नालीसे निकाला जाता है और अलग-अलग स्थानों पर सींच दिया जाता है तो वही एकरस जल नाना प्रकारकी वस्तुओंसे मिलकर अनेक प्रकारके रसों और गुणोंको प्रकट करता है ।। ३९ ॥
गायके द्वारा पिया गया वही कूप-जल कुछ प्रक्रियाके बाद दूध हो जाता है। सोंठकी जड़में पहुंचकर उसका स्वाद १. क मात्राः ।
ROLAGAUAGEमच्यामजन्म
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