SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बराङ्ग चरितम् 1 मायोदयश्चतुर्थो यश्चमरीरोमसंनिभः । प्रत्येति प्रकृतिस्तेन ज्ञानयन्त्रप्रपीडितः ॥ ७७ ॥ आद्यो लोभोदयस्तीव्र: क्रि' मिरागसमो मतः । श्रुतानलप्रदग्धोऽपि लोभो न परिहीयते ॥ ७८ ॥ लोभोदयो द्वितीयस्तु नीलीवर्णसमो मतः । ज्ञानपानीय संधौतस्तेनात्मा' कल्मषायते ॥ ७९ ॥ लोभोत्थानस्तृतीयस्तु आर्द्रपङ्कसमो मतः । श्रुततोयविनिर्धीतस्तेन वैमल्यमुच्छति ॥ ८० ॥ लोभोदयश्चतुर्थो यो हरिद्वारागसंनिभः । श्रुतिसूर्या संतप्तः क्षणाद्रागः प्रणश्यति ॥ ८१ ॥ अन्तिम प्रकारकी ( संज्वलन ) मायाका उभार आत्माको चमरी मृगके रोमके समान कर देता है। अतएव ज्यों ही आत्मारूपी रोमको जीव ज्ञानरूपी यन्त्रमें रखकर दबाते हैं त्यों ही वह बिना विलम्ब अपने शुद्ध स्वभावको प्राप्त कर लेता है ॥ ७७ ॥ लोभोदाहरण प्रथम लोभ ( अनन्तानुबन्धी) के उदय होनेपर आत्मापर वैसा ही अमिट संस्कार पड़ जाता है जैसा कि कीड़ोंके खूनसे बनाये गये लाल रंग ( रक्तिमा ) का होता है। अतएव ऐसे आत्माको जब शास्त्रज्ञानरूपी ज्वालामें जलाया जाता है तब भी वह लोभका संस्कार (लालिमा ) उसे नहीं छोड़ता है ॥ ७८ ॥ अप्रत्याख्यानावरणी लोभसे आत्मापर वैसा ही रंग चढ़ जाता है जैसा कि नीले परिणाम यह होता है कि ज्यों ही जीव अपने आपको ज्ञानरूपी जलमें धोता है त्यों ही जाता है ।। ७९ ।। प्रत्याख्यानावरणी लोभके उभारकी गीले कीचड़के साथ तुलना को गयी है भ्यासरूपी जलसे भलीभाँति धोता है त्योंही इस लोभका नामो-निशां भी आत्मासे गायब हो जाता है ॥ ८० ॥ अन्तिम संज्वलन लोभके उदय होनेपर उसका जो प्रतिबिम्ब आत्मापर पड़ता है वह हल्दीके रंगकी लाली के समान होता है । उसपर शास्त्ररूपी सूर्य की किरणें पड़ी नहीं कि वह क्षणभर में ही लुप्त हुआ ।। ८१ ।। १. क कृमि । २. क तेनात्माऽकस्वायते । Jain Education International रंगका किसी धवल वस्तुपर आता है, आत्मा तुरन्त ही शुचि और स्वच्छ हो For Private & Personal Use Only फलतः ज्योंही प्राणी आत्माको शास्त्रा चतुर्थ: सर्गः [ ७४ ] www.jainelibrary.org
SR No.001826
Book TitleVarangcharit
Original Sutra AuthorSinhnandi
AuthorKhushalchand Gorawala
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1996
Total Pages726
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy